Friday, January 1, 2016

भूतेश्वरनाथ गरियाबंद (Bhuteshwarnath Gariyaband)

गरियाबंद से 3 किलो मीटर दूर घने जंगलों के बीच बसा है ग्राम मरौदा। सुरम्य वनों एवं पहाडियों से घिरे अंचल में प्रकृति प्रदत्त विश्व का सबसे विशाल शिवलिंग विराजमान है। एक ओर जहां महाकाल और अन्य शिवलिंग के आकार के छोटे होते जाने की खबर आती है वहीं एक शिवलिंग ऐसा भी है जिसका आकार घटता नहीं बल्कि हर साल और बढ़ जाता है। यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से निर्मित है। हर साल महाशिवरात्रि और सावन सोमवार को लंबी पैदल यात्रा करके कांवरिए यहां पहुंचते हैं। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित इस शिवलिंग को यहां भूतेश्वरनाथ के नाम से पुकारा जाता है। जिसे भकुर्रा भी कहा जाता है द्वादश ज्योतिर्लिंगों की भांति छत्तीसगढ़ में इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग होने की मान्यता प्राप्त है। सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इस शिवलिंग का आकार लगातार हर साल बढ़ रहा है। संभवतरू इसीलिए यहां पर हर साल आने पैदल आने वाले भक्तों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। छत्तीसगढ़ी भाषा में हुकारने की आवाज को भकुर्रा कहते हैं, इसी से छत्तीसगढ़ी में इनका नाम भकुर्रा पड़ा है।



छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मरौदा गांव में घने जंगल के बीच एक प्राकृतिक शिवलिंग है, जो भूतेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह विश्व का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग माना जाता है। इस शिवलिंग से जुड़ा एक बहुत ही अनोखा रहस्य है, जो इसे और भी खास बनाता है। रहस्य की बात यह है कि हर साल इस शिवलिंग की लंबाई चमत्कारिक रूप से बढ़ रही है।

हर साल शिवलिंग बढ़ता है 6-8 इंच
इस शिवलिंग के प्रति लोगों के मन में बहुत आस्था और विश्वास है। उसका सबसे बड़ा कारण यहां होने वाला चमत्कार। इस शिवलिंग की खासियत है कि ये शिवलिंग अपने आप बड़ा और मोटा होता जा रहा है। यह जमीन से लगभग 18 फीट ऊंचा एवं 20 फीट गोलाकार है। प्रतिवर्ष इसकी ऊंचाई नापी जाती है जो लगातार 6 से 8 इंच बढ़ रही है।

ऐसे हुई थीं शिवलिंग की स्थापना
इस शिवलिंग के अस्तित्व में आने को लेकर एक कहानी प्रसिद्ध है। कहानी के अनुसार, सैंकड़ों साल पहले यहां एक शोभा सिंह नाम का व्यक्ति रहता था। वह रोज शाम को अपने खेतों को देखने जाता था, तभी उसे खेत से कुछ ही दूरी पर शिवलिंग की आकृति के एक टीले से सांड और शेर जैसे जानवरों की आवाज सुनाई दी।
जब शोभा सिंह ने यह बात गांव वालों को बताई तो उन्होंने इन जानवरों की खोज करने की कोशिश की, लेकिन दूर-दूर तक कोई जानवर नहीं मिला। तब इस टीले के प्रति लोगों की आस्था बढ़ने लगी और वे इसकी पूजा शिवलिंग के रूप में करने लगे।
गांव को लोगों के अनुसार, पहले यह शिवलिंग बहुत ही छोटा था, लेकिन समय के साथ-साथ इसकी लम्बाई और गोलाई बढ़ती रही, जो आज भी जारी है।

घने जगल में स्थापित हैं शिवलिंग
यह शिवलिंग घने जगल में स्थापित है, लेकिन फिर भी यहां आने वाले भक्तों की संख्या बहुत ज्यादा है। इस शिवलिंग से जुड़े चमत्कार की वजह से यह कई लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। कई भक्त तो हर साल शिवलिंग की बढ़ती लम्बाई के चमत्कार को देखने जाते है। कहा जाता है कि यहां पर की गई प्रार्थना जरुर पूरी होती है।

कई पुराणों में मिलता है इसका उल्लेख
यहीं स्थान भुतेश्वरनाथ, भकुरा महादेव के नाम से जाना जाता है। इस शिवलिंग का उल्लेख कई पुराणों में भी पाया जाता है। पुराणों के अनुसार, यह का एक अनोखा और महान शिवलिंग है। जिसकी पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

किंवदंती है कि इनकी पूजा बिंदनवागढ़ के छुरा नरेश के पूर्वजों द्वारा की जाती थी। दंत कथा है कि भगवान शंकर-पार्वती ऋषि मुनियों के आश्रमों में भ्रमण करने आए थे, तभी यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए।

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