Sunday, May 29, 2016

चित्रकोट वाटरफॉल :देश का सबसे बड़ा वाटरफॉल, कहा जाता है इंडिया का नियाग्रा

 वाटरफॉल्स के बारे में पूछा जाए तो यकीनन आप दुनियाभर में मशहूर नियाग्रा के वाटरफॉल की ही चर्चा करेंगे, लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में जगदलपुर का चित्रकोट वाटरफॉल इतना मनमोहक और आकर्षक है कि इसे भारत का नियाग्रा कहा जाता है। जानें इस वाटरफॉल की खासियत...


90 फीट की ऊंचाई से गिरती है जलधारा

- गोदावरी की सहायक नदी इंद्रावती पर चित्रकोट नाम की जगह पर देश का सबसे बड़ा वाटरफॉल है।
- सभी मौसम में भरा-पूरा रहने वाला यह वाटरफॉल 0.75 किमी चौड़ा और 90 फीट ऊंचा है।
- खासियत यह है कि बारिश के दिनों में यह रक्तिम लालिमा लिए हुए होता है तो गर्मियों की चांदनी रात में यह सफेद दूधिया नजर आता है।

- अलग-अलग मौकों पर इस वाटरफॉल से कम-से-कम तीन और मैक्सीमम सात धाराएं गिरती हैं।
- बरसात में इसकी चौड़ाई मैक्सीमम होती है। उस समय इसकी चौड़ाई 150 मीटर तक पहुंच जाती है।
- इस जगह पर इंद्रावती नदी की जलधारा 90 फीट की ऊंचाई से तेज आवाज के साथ गिरती है।

- सनसेट और सनराइज के दौरान इसका लुक और ज्यादा खूबसूरत होता है, क्योंकि सूर्य की किरणें इंद्रधनुषी इफेक्ट पैदा करती हैं।


कैसे पहुंचे

- जगदलपुर रेल और बायरोड अासानी से जुड़ा हुआ है। यहां नजदीकी एयरपोर्ट रायपुर है। रायपुर से जगदलपुर की दूरी करीब 285 किमी है।
- जगदलपुर से चित्रकोट जाने के लिए प्राइवेट टैक्सी करना बेहतर रहता है।
- पब्लिक ट्रांसपोर्ट की फेसेलिटी यहां बहुत कम मिलती है। जगदलपुर से चित्रकोट फाल 40 किमी की दूरी पर है।


कहां ठहरें

चित्रकोट में ठहरने की ज्यादा इंतजाम नहीं है, इसलिए जगदलपुर में ठहरना चाहिए। जगदलपुर में कई अच्छे होटल और लॉज हैं।
तीरथगढ़ फाल और कोटुम्बसर गुफा भी देखने लायक
- तीरथगढ़ वाटरफॉल बहुत बड़ा नहीं है लेकिन देखने लायक है। यहां पर नदी का बहाव दो-तीन फाॅल बनाता है। गिरने पर पानी की धारा चांदी की तरह चमकती हुई लगती है।
- कोटुम्बसर गुफा तकरीबन 320 मीटर लंबी और 20 से 60 मीटर की गहराई पर बनी इस गुफा की गिनती वर्ल्ड की नेचुरली बनी बिगेस्ट अंडरग्रांउड केव्स में होती है।

Source: Dainik Bhaskar

Friday, May 13, 2016

ऐसा माना जाता है कि यहां से पांडवों ने बनाई थी 500 KM की सुरंग, क्यों चर्चा में है ये गुफा

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में पेंड्रा से करीब 14 किलोमीटर दूर स्थित धनपुर गांव के बारे में कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के एक साल यहीं बिताए थे। यहां की पांडव गुफा के बारे में मान्यता है कि वहां से एक सुरंग सोहागपुर (एमपी) तक जाती है जिसे पांडवों ने बनाया था। हाल ही में तालाब में जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति मिलने के बाद धनपुर फिर से चर्चा में है। पांच सौ किलोमीटर लंबी सुरंग!...

- धनपुर और आस-पास के इलाके में पौराणिक इतिहास की कई किवंदतियां प्रचलित हैं।
- यहां की पहाड़ी पर एक रहस्यमय गुफा है, जिसे पांडव गुफा कहा जाता है।
- मान्यता है कि गुफा का दूसरा चार-पांच सौ किलोमीटर दूर सोहागपुर (एमपी का शहडोल जिला) में है।
- कहा जाता है कि धनपुर से सोहागपुर जाने के लिए पांडवों ने यह सुरंग खुद बनाई थी।
- ग्रामीणों के मुताबिक गुफा के अंदर घुप अंधेरे में अब कोई ज्यादा दूर जा नहीं सकता न अधिक देर ठहर सकता है।
- गुफा में 30 फीट अंदर तक कई देवी-देवताओं की ऐतिहासिक प्रतिमाएं रखी हुई हैं।
- ग्रामीण कई सालों से इनकी पूजा-अर्चना कर रहे हैं।

रोज एक तालाब बनाते थे पांडव
- कहते हैं, पांडवों ने माता कुंती के साथ अज्ञातवास के 12 साल में एक साल ग्राम धनपुर में बिताए थे।
- धनपुर में रहते हुए पांडवों ने रोज एक तालाब बनाए। यानी कुल 360 तालाब बने।
- इनमें से 100 तालाब आज भी हैं। बाकी बहुत से तालाबों को गहरा कर ग्रामीणों ने खेत बना लिए हैं।

जमीन में दफन इतिहास
- ऐतिहासिक सबूत बताते हैं कि धनपुर 9वीं-10वीं सदी में एक विकसित शहर था।
- जाने-अनजाने खुदाई में उस समय के भवनों के अवशेष, मूर्तियां, मंदिर आदि मिलते रहते हैं।
- आठवीं-दसवीं शताब्दी की जैन तीर्थंकरों एवं अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां मिल चुकी हैं।
- यहां एक मां दुर्गा का एक प्राचीन मंदिर है, जिसका रीकंस्ट्रक्शन कराया जा रहा है।






तालाब गहरीकरण के दौरान मिली मूर्ति
- धनपुर में तालाब गहरीकरण के दौरान खुदाई में जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की दुर्लभ ऐतिहासिक प्रतिमा मिली है।
- ग्रामीणों से मिली सूचना के बाद प्रशासन ने मूर्ति को जब्त कर ट्रेजरी में सुरक्षित रखवा दिया है।
कई मूर्तियां चोरी
-जैन तीर्थंकर आदिनाथ, बाहुबली, नेमीनाथ सहित कई देवी देवताओं की मूर्तियां धनपुर से चोरी हो चुकी हैं।
- ग्रामीणों ने गांव में मिलने वाली मूर्तियों को संरक्षित करने की मांग कई बार प्रशासन से की है।

Thursday, May 12, 2016

यहां हुआ था परशुराम का जन्म, ऐसे बिखरी पड़ी हैं निशानियां

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में घने जंगलों के बीच स्थित कलचा गांव में स्थित एक ऑर्कियोलॉजिकल साइट है जिसे शतमहला कहा जाता है। मान्यता है कि जमदग्नि ऋषि की पत्नी रेणुका इसी महल में रहती थीं और भगवान परशुराम को जन्म दिया था। कलचा गांव देवगढ़ धाम से महज दो किलोमीटर दूर है और उस पूरे क्षेत्र में ऋषि-मुनियों के इतिहास से जुड़े कई अवशेष बिखरे पड़े हैं।


- हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों से घिरा छत्तीसगढ़ का सरगुजा क्षेत्र प्राचीन काल के दंडकारण्य का वह हिस्सा है जो नामी-गिरामी ऋषि-मुनियों की तपोस्थली हुआ करता था।

- इसे उस समय सुरगुंजा के नाम से जाना जाता था, वही बदलते-बदलते सरगुजा हो गया।
- सरगुजा डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर अंबिकापुर से लगभग 35 किलो मीटर दूर पर उदयपुर ब्लाॅक का एक पंचायत है देवटिकरा।
- देवटिकरा पंचायत स्थित देवगढ़ धाम को परशुराम के पिता जमदग्नि की तपोभूमि माना जाता है।
- इसके अलावा वहां मौजूद 12 ज्योतिर्लिंगों का पुराना मंदिर भी उस जगह की ऐतिहासिकता की पुष्टि करता है।
- देवगढ़ के बारे में यह भी मान्यता है कि अब से करीब दो हजार साल पहले कालिदास ने वहीं पर मेघदूतम नाटक लिखा था।
- कलचा गांव देवगढ़ धाम से पश्चिम की ओर महज दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- देवगढ़ धाम के पुजारी अमृत कुमार वैष्णव का कहना है कि पूरे क्षेत्र में परशुराम और उनके माता-पिता से जुड़ी कहानियां और निशानियां मौजूद हैं।
- कोरिया जिले में पोस्टेड पुरातत्त्व विभाग के अधिकारी वाल्मीकि दुबे का भी कहना है कि यहां स्थानों के नाम और मिलने वाले अवशेषों से परशुराम के कनेक्शन की पुष्टि होती है।

कामधेनु के लिए जमदग्नि की हत्या
-विष्णुपुराण के अनुसार जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी, जिसे राजा सहस्त्रार्जुन हासिल करना चाहता था।
- उसने आश्रम पर हमला कर गाय को कब्जे में ले लिया और जमदग्नि की हत्या कर दी।
- इससे नाराज होकर जमदग्नि के बेटे परशुराम ने न सिर्फ सहस्त्रार्जुन को मारा बल्कि दर्जनों पर पृथ्वी को कई बार क्षत्रियविहीन कर दिया।




यहां टांगीनाथ देवता कहलाते हैं परशुराम
-देवगढ़ से साउथ-ईस्ट दिशा में लगभग 22 किलोमीटर दूर महेशपुर नाम की जगह है, जिसे ‘परहपारा’ भी कहा जाता है।
- कहते हैं की परहापारा में परशुराम का आश्रम था और यह नाम भी उन्हीं के नाम का अपभ्रंश है।
- परशुराम ने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए ऋषि होने के बावजूद परशु (फरसा) धारण किया था।
- फरसा का आकार टांगी (लकड़ी काटने वाली कुल्हाड़ी) से मिलता है, इसीलिए परशुराम को स्थानीय लोग टांगीनाथ देवता कहते हैं।

ऐसे लिया था बदला
- किवदंतियों और धार्मिक इतिहास के मुताबिक परशुराम ने अपने पिता की मौत के बदले में सिर्फ सहस्त्रार्जुन को ही खत्म नहीं किया बल्कि पूरे हैहय वंश का नाश कर दिया।
- इसके बाद उनकी धाक पूरे भारत में हो गई। उस समय का भारत आज से काफी बड़ा था जिसमें अफगानिस्तान से लेकर इंडोनेशिया तक का इलाका शामिल था।
- कालिदास के मेघदूत में कुबेर द्वारा बसाई हुई अलकापुरी का जिक्र है, विद्वानों के मुताबिक वह जगह परहापारा ही है।

लगता है विशाल मेला
-देवगढ़ में हर साल साल सावन में एक महीने का विशाल मेला लगता है।
- इसके अलावा महाशिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा और मकर संक्रांति पर में मेले लगते हैं।
- जगह के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को देखते हुए संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग तेजी से कंजर्वेशन के काम में जुटा हुआ है।

परशुराम की मां के नाम पर नदी
- सरगुजा जिले में बिलासपुर-अंबिकापुर रोड पर स्थित उदयपुर से सूरजपुर की ओर जाने वाले रोड पर 22 किलोमीटर की दूरी पर रेण नदी के किनारे बसा है देवगढ़।
- वहां से सूरजपुर की दूरी महज 16 किलोमीटर है।
- किवदंती है कि मतरिंगा पहाड़ से निकलने वाली रेण नदी का नाम परशुराम की माता रेणुका के नाम पर ही पड़ा है।
- देवगढ़ में परशुराम का आश्रम माने जाने वाले स्थान पर प्राचीन मंदिर के कुछ अवशेष भी मिले हैं।
- पुरातत्व विभाग के मुताबिक मंदिर का निर्माण 11वीं-12वीं सदी में हुआ होगा।
- वर्तमान में जो मंदिर है उसके गर्भगृह में एकमुखी शिवलिंग स्थित है।
- इसके अलावा नदी देवी, सूर्य, उमा-महेश्वर की मूर्तियां भी वहां मिली हैं।

ऐसे सामने आया इतिहास
-अब से करीब 73 साल पहले देवगढ़ का पौराणिक इतिहास सामने आया।
- कहा जाता है कि 1943 में पास के जमगला के रहने वाले विद्यादास और उनकी उनकी शिष्या ने सपने में कई मूर्तियां गड़ी हुई देखीं।
- यह बात उन्होंने गांव वालों से शेयर की तो जगह की खुदाई की गई। खुदाई में वहां से अर्धनारीश्वर और द्वादश (12) शिवलिंग की मूर्तियां मिलीं।
- उसके बाद वहां लोगों ने एक मंदिर बनवाया। वर्तमान में वहीं मंदिर है।

इस जगह एक प्राचीन सुरंग होने की बात बताई जाती है।

शतमहला में थे 121 तालाब
-परशुराम की माता रेणुका के महल शतमहला के आस-पास कभी 121 तालाब हुआ करते थे।
- यहां सात महल थे जिनके भग्नावशेष अभी देखे जा सकते हैं।
- लगभग 100 तालाब सूख चुके हैं लेकिन 21 तालाब अब भी देखे जा सकते हैं।
- शतमहला में प्रत्येक नवरात्र को महिषासुरमर्दिनी की पूजा की जाती है।


अभी के शिवमंदिर में स्थित शिवलिंग व देवगढ़ के बारे में बताते पुजारी।

तो इसलिए यहां नहीं उगती घास
-इस क्षेत्र में एक अंधला नाम का गांव है जहां एक तालाब का नाम श्रवण तालाब है।
- किवदंती है कि राजा दशरथ ने इसी के किनारे धोखे से श्रवणकुमार को तीर मार दिया था।
- पास में एक ऐसी जगह है जहां घास नहीं उगती। कहते हैं उसी जगह श्रवणकुमार के माता-पिता का अंतिम संस्कार हुआ था।
- अंधला नाम भी श्रवणकुमार के अंधे माता-पिता से जुड़ा हुआ बताया जाता है।


दशकों पुराना बरगद का पेड़
-इसी क्षेत्र में बरगद का एक विशाल पुराना पेड़ है, जिसके आस-पास पुरानी मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं।
- एक नौ कोनों वाली पुरानी बावली भी है। कहा जाता है इसके पानी की इस्तेमाल ऋषि-मुनि करते थे।

Sunday, May 1, 2016

रायपुर में फहराया गया देश का सबसे ऊंचा तिरंगा, ये है खासियत

रायपुर के मरीन ड्राइव में देश का सबसे ऊंचा तिरंगा फहराया गया। यह तिरंगा 269 फीट ऊंचे पोल पर फहराया गया है, इससे पहले रांची में जमीन से 493 फीट की ऊंचाई पर झंडा फहराया गया था लेकिन तेज हवा के चलते 10 दिन में 5 बार फटने की वजह से दो दिन पहले उसे उतार लिया गया था। इसलिए रायपुर में फहराया गया तिरंगा ही देश में सबसे ऊंचा है।5 मिनट से ज्यादा लगे फहराने में...


- तिरंगे की लंबाई 105 फीट और चौड़ाई 70 फीट है, जो देश में सबसे ज्यादा है।
- 60 किलो वजनी तिरंगे को 82 मीटर ऊंचे पोल पर चढ़ाने में 5 मिनट का वक्त लगा।
- पोल को 10-10 मीटर ऊंचे 8 पोल को जोड़कर बनाया गया है। इसका वजन 18 टन है।
ये हैं देश में सबसे ऊंचे ध्वज
1. पहाड़ी मंदिर रांची- 293 फीट (इस ध्वज को उतार लिया गया है।)
2. तेलीबांधा रायपुर- 269 फीट
3. फरीदाबाद- 250 फीट
4. भोपाल- 237 फीट
5. कनॉट प्लेस, दिल्ली- 207 फीट
6. जयपुर- 206 फीट