Friday, September 30, 2016

माँ खल्लारी मंदिर,महासमुंद

माँ खल्लारी मंदिर महासमुंद से 23 km दूर बागबाहरा मार्ग पर ग्राम भीमखोज में स्थित है।जिला महासमुंद में कई पर्यटन स्थल जैसे बागबाहरा चंडी, कोसरंगी के सिद्ध बाबा व स्वप्न देवी महामाया,मामा भांजा मंदिर, सिरपुर, बेमचा खल्लारी, बिरकोनी चंडी, शक्ति माता हथखोज आदि अनिके दर्शनीय स्थल है।साथ ही यहाँ से राजीव लोचन मंदिर राजिम 30 km, चम्पारण 25 km की दुरी पर है।
भीमखोज तक पहुचने के लिए सड़क एवम् रेलमार्ग दोनों की सुविधा है रेलवे स्टेशन से मंदिर की दुरी लगभग 2 km है। भीमखोज खल्लारी प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है। माँ खल्लारी जी की मंदिर ऊपर पहाड़ी में स्थित है।
पहाड़ी पर जाने सीढ़िया
पहाड़ी पर चढ़ने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया है यहाँ कुल 842 सीढ़िया है। संगमरमर और ग्रेनाइट पत्थरो से निर्मित मंदिर देखकर आँखे ठहर जाती है। खल्लारी में पहाड़ी से निचे छोटी खल्लारी व् मंदिर के ऊपर पहाड़ी वाली बड़ी खल्लारी माता विराजमान है।

माँ खल्लारी का आगमन यहाँ महासमुंद के समीप स्थित ग्राम मचेवा से हुआ है। यह स्थान अनेक पौराणिक कथाओ को समेटे हुए है।
भागीरथी दर्शन
शिव दर्शन
गुफा वाली दंतेश्वरी माँ
वेदव्यास जी
यहाँ गुफा वाली माँ दंतेश्वरी, शिव दर्शन, भागीरथी दर्शन, बटुक भैरव, भीम पाँव, भीम चुल, व डोंगा पत्थर आदि देखने योग्य है। उची पहाड़ी पर चारो ओर बिखरी हरियाली मन मोह लेती है।
वही लगभग 10 फिट उची और 20 फिट लंबी डोंगा पत्थर लोगो का ध्यान आकर्षित करती है डोंगा पत्थर की स्थिति देखने में ही असहज है।

भीम पाँव
पहाड़ी पर जगह जगह छोटे गड्ढे देखने को मिलते है ये गड्ढे कोई सामान्य गड्ढे नहीं बल्कि पांडव पुत्र भीम के पावँ के निशान है इनके आकर 2 फुट से लेकर 8 फु 2 फुट से लेकर 8 फुट तक लंबाई के, 5 फुट तक चौड़े और 6 से 8 फुट तक गहराई के देखने को मिलते है। ऐसा कहा जाता है की अज्ञात वास के समय भीम इन पहाड़ियों पे विचरण किया करते थे ये उन्ही के पाव के निशान है । भीम की विशालता और शारीरिक क्षमताओं के बारे में हमें अकसर कई कथाओ में सुनने को मिलते है इन बातो से इस मान्यताओ को और भी बल मिलता है।यही पर एक लंबी चौड़ी चूल्हे की आकर की चट्टान है जिसे भीमचुल कहा जाता है इसी पत्थर पर भीम खाना बनाया करते थे ऐसी मान्यता है ।पहाड़ी पर और भी कई चीजे धयान आकर्षित करती है यहाँ से आसपास का नजारा भी शानदार होता है सीढ़ियों पर झुण्ड में बैठे बंदर भी कहि न कहि दिख ही जाते है इनकी उछाल कूद पूरी पहाड़ी पर जब तब दिखती ही रहती है।

साल के दोनों नवरात्रो में श्रद्धालु यहाँ मनोकामना पूर्ति हेतु ज्योत जलाते है।साथ ही नवरात्र में यहाँ बड़ी संख्या में लोगो की भीड़ माँ के दर्शन के लिए उमड़ती है नवरात्र में कई आयोजन भी कराये जाते है।चैत्र मास की पूर्णिमा में यहाँ मेला लगता है।
जगन्नाथ मंदिर
भगवान जगन्नाथ
पहाड़ी से निचे करीब 800 मिटर की दुरी पर माँ काली की लगभग १२ फिट ऊची विशाल प्रतिमा और भगवान् जगन्नाथ जी की प्राचीन मंदिर स्थित है। जगन्नाथ जी का यह मंदिर 8वीं सदी में बनाया गया था।पत्थरो से बने इस मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ है मंदिर प्रांगण का महौल बहुत शांत है साथ ही मंदिर में जगन्नाथ जी की बहुत सुंदर प्रतिमा स्थापित है। जगन्नाथ यात्रा में यहाँ विशेष आयोजन होता है।
यहाँ से ग्राम कोसरंगी के सिद्ध बाबा मंदिर केवल 13 km. दूर है इसलिए जब भी आप खल्लारी माता के दर्शन के लिए आयें तो ग्राम कोसरंगी के सिद्ध बाबा व चंडी माता मन्दिर बागबाहरा के दर्शन जरूर करते

Thursday, September 8, 2016

इस पुराने मंदिर में स्वामी भक्त‍ि के लिए होता है कुत्ते का पूजन...

क्या आपने कभी सुना है कि किसी मंदिर में कुत्ते की पूजा होती है. जी हां! छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में 'कुकुरदेव' नाम का एक प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर में किसी देवी-देवता की नहीं बल्कि कुत्ते की पूजा होती है. कहते हैं कि इस मंदिर में दर्शन करने से कुकुर खांसी नहीं होती और इसके साथ ही कुत्ते के काटने का भय भी नहीं रहता.

बहुत पुराना है मंदिर का इतिहास-
14वीं-15वीं शताब्दी में नागवंशी शासकों ने इसका निर्माण करवाया था. मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा है. उसके बगल में एक शिवलिंग भी है. मंदिर के गेट पर दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा लगाई गई है. यह मंदिर 200 मीटर के दायरे में फैला हुआ है.

लोग यहां शिव के साथ-साथ कुकुरदेव प्रतिमा की पूजा भी करते हैं. मंदिर की चारों दिशाओं में नागों के चित्र बने हुए हैं. मंदिर को चारों चरफ 14वीं-15वीं शताब्दी के शिलालेख भी रखे हैं, जिन पर बंजारों की बस्ती , चांद-सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है. यहां राम, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के अलावा भगवान गणेश की भी एक प्रतिमा स्थापित है.

इस वजह से बना था मंदिर-
कहते हैं, पहले यहां बंजारों की बस्ती थी. उस बस्ती में मालीघोरी नाम का एक बंजारा रहता था और उसके पास एक पालतू कुत्ता था. गांव में अचानक अकाल पड़ने के कारण बंजारे को अपने कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा.

इसी बीच साहूकार के घर चोरी हो गई. कुत्ते ने यह देख लिया था कि चोर वो सामान कहां छुपा रहे हैं. सुबह कुत्ता साहूकार को उस जगह पर ले गया जहां चोरी का सामान था. इससे खुश होकर साहूकार ने इस घटना का उल्लेख एक कागज पर किया और उसे कुत्ते के गले में बांधकर अपने असली मालिक के पास जाने के लिए मुक्त कर दिया.

जब बंजारे ने कुत्ते को वापस आते देखा तो गुस्से में उसे मार डाला. उसके बाद बंजारे ने कुत्ते के गले में बंधे कागज को पढ़ा. उसे पढ़कर बंजारे को अपनी गलती का एहसास हुआ और कुत्ते की याद में उसने मंदिर प्रांगण में कुत्ते की समाधि बनवा दी. उसके बाद उसने कुत्ते की मूर्ति भी वहां स्थापित कर दी. तब से यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है.

यह जानकारी मंदिर में एक बोर्ड पर राज्य के संस्कृत‍ि एवं पुरातत्व विभाग की ओर से भी दी गई है.