Friday, June 17, 2016

एक सफर ---भिलाई इस्पात संयंत्र ( 6 जून 1955 से अब तक का )

तस्वीरो में देखे भिलाई सटल प्लांट का अब तक सफर































Monday, June 13, 2016

कभी यहां रहता था राक्षस दंडक, अब जमीन से निकल रहीं 10वीं सदी की मूर्तियां

जंगलों से घिरे पुरातात्विक स्थल महेशपुर  (अंबिकापुर ) को उसके मूल स्वरूप में लौटाने की कवायद चल रही है। संस्कृति विभाग के जरिए यहां प्राचीन धरोहरों को सहेजने का काम चल रहा है। ओडिशा, बंगाल, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों के कलाकार यहां मिली 10वी सदी और पहले की मूर्तियों के साथ-साथ पुराने टीलों को संवारने में जुटे हुए हैं। पौराणिक इतिहास के मुताबिक यह इलाका कभी दंडकारण्य का प्रवेश द्वार रहा होगा। रामायण में दंडकारण्य नाम के घनघोर जंगल का जिक्र है, जो दंडक राक्षस का अड्डा हुआ करता था।

- पहले चरण में दो मंदिरों को सवांरा जा रहा है। एक मंदिर में छह से सात टीले हैं। दो करोड़ रुपए इस प्रोजेक्ट पर खर्च किए जा रहे हैं।

- खुदाई में निकल रहे पत्थरों को ही तराशकर कलाकारों द्वारा टीलों को वास्तविक आकार देने का काम चल रहा है।
- दो से तीन महीने में काम पूरा होने की उम्मीद है। अधिकारियों के अनुसार ऐतिहासिक महत्व के हिसाब से यह इस अंचल का बड़ा पर्यटन केंद्र होगा।
खुदाई भी होनी है

- वर्षों पहले पुरातत्व विभाग द्वारा यहां कुछ टीलों की खुदाई कर मूर्तियों को बाहर निकाला गया है जबकि कई टीलों की खुदाई होनी है।
- अधिकारियों के अनुसार कल्चुरी राजाओं के समय में इन मंदिरों को बनाए जाने के सबूत मिले हैं।
- महेशपुर की विशालता से पता चलता है कि यहां तीर्थयात्री आते थे और यह दंडकारण्य का प्रवेश द्वार रहा होगा।
- विष्णु, वराह, वामन, सूर्य, नरसिंह, उमा, महेश्वर, नायिकाएं एवं कृष्ण लीला से संबंधित मूर्तियां खुदाई में निकली हैं।

मूर्तियों की संग्रहालय में होगी शिफ्टिंग
- यहीं पर एक संग्रहालय बना है, जिसमें खुदाई में निकल रही मूर्तियों को रखा जाएगा।
- इसके पीछे बड़ा उद्देश्य मूर्तियों को बचाना है। तस्करों की निगाहें यहां खुले में पड़ी मूर्तियों पर रही हैं।
- पिछले सालों में यहां से कई मूर्तियों की चोरी हो चुकी है।
- बताया जाता है कि तस्कर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चोर इन मूर्तियों को बड़ी कीमत में बेचते होंगे।
- तीन साल पहले चोरी गई मूर्तियों की तलाश में पुलिस नेपाल तक गई लेकिन उनका का पता नहीं चला।
- यहां दसवीं सदी के टूटे-फूटे शिलालेखों के अलावा प्रिहिस्ट्रोरिक एज (जिस समय का लिखित इतिहास नहीं) में कठोर पत्थरों से बने धारदार और नुकीले हथियार भी मिले हैं।
- महेशपुर की शिल्पकला से पता चलता है कि वह समय इस इलाके के लिए गोल्डन एज रहा होगा। इस पर रिसर्च होना अभी बाकी है।

कला एवं संस्कृति से समृद्ध रहा है क्षेत्र
- पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के अनुसार पुरातात्विक स्थल महेशपुर आने वाले समय में लोगों के मनोरंजन के साथ ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से पर्यटन का बड़ा केंद्र होगा।
- आठवीं सदी से लेकर 11 वीं सदी के बीच यह क्षेत्र कला और सस्कृति से अद्भुत रूप से समृद्ध माना जाता है। यहां शिव वैष्ण्व एवं जैन धर्म से संबंधित पुरावशेष हैं।

सामने आएगा इतिहास
- महेशपुर अंबिकापुर से 45 किलोमीटर दूर और उदयपुर ब्लॉक हेडक्वार्टर से सात किलोमीटर दूर है।
- बताया जाता है कि इसी रास्ते से भगवान राम का दंडकारण्य में आगमन हुआ और उन्होंने वनवास का महत्वपूर्ण समय यहां पर बिताया।
- इतिहासाकरों के अनुसार जमदाग्नि ऋषि की पत्नी रेणुका ही इस स्थल पर रेण नदी के रूप में बतरी हैं।
- रेण नदी का उद्गम उदयपुर ब्लॉक का ही मतरिंगा पहाड़ है।
क्या है दंडकारण्य
- दंडकारण्य पूर्वी मध्य भारत का एक भौगोलिक क्षेत्र है।
- क़रीब 92,300 स्क्वायर किलोमीटर में फैले इस इलाक़े में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं।

- इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक क़रीब 320 किमी और पूरब से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है।
- पुरातत्व एक्सपर्ट जीएल रायकवार के ने बताया, " ''2008 में इस क्षेत्र में टीले की खुदाई शुरू हुई थी। महेशपुर से लक्ष्मणगढ़ तक चार किलोमीटर में मंदिरों के कई समूह हैं।''
- '' पहले चरण में दो मंदिरों की खुदाई पूरी होने के बाद इन्हें मूल स्वरूप में आकार दिया जा रहा है। खुदाई में निकले पत्थरों से ही टीलों को आकार दिया जा रहा है।''

Source: Dainik Bhaskar


Sunday, June 5, 2016

देश का इकलौता मंदिर, जहां पत्नी के साथ हैं शनि देव

 छत्तीसगढ़ का राजधानी से 117 किमी दूर कवर्धा में शनिदेव का एक ऐसा देवालय भी है, जहां वे अपनी पत्नी देवी स्वामिनी के साथ पूजे जाते हैं। इतना ही नहीं जहां देश के प्रमुख शनि मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर विवाद रहे हैं, वहीं देश में शनिदेव की एकमात्र इस सपत्नीक प्रतिमा की पूजा से महिलाओं को भी कोई रोक-टोक नहीं है। धूल हटने पर सामने आई अनूठी प्रतिमा ...



पांडव कालीन बताई जाती है प्रतिमा

- कवर्धा जिला मुख्यालय से भोरमदेव मार्ग पर 15 किलोमीटर दूर ग्राम छपरी, फिर 500 मीटर आगे चलने पर प्राचीन मड़वा महल है।
- यहां से जंगलों के बीच से होता हुआ 4 किमी का टेढ़ा-मेढ़ा पथरीला रास्ता और संकरी नदी के उतार-चढ़ाव हिस्से को पार करने के बाद आता है ग्राम करियाआमा।
- इस गांव की प्रसिद्धि यही है कि यहां देश का एकमात्र ऐसा शनि देवालय है, जहां पत्नी के साथ उनकी पूजा होती है। शनिदेव की प्रतिमा पांडव कालीन बताई जाती है।
- ज्येष्ठ माह की अमावस्या को यानी इस बार 4 जून को भगवान शनिदेव की जयंती मनाई जाएगी। इसे लेकर करियाआमा में भी विशेष तैयारी की गई है।
हटी धूल तो सामने आई अनूठी प्रतिमा
- पुरोहित श्री शर्मा के मुताबिक वे काफी लंबे समय से भगवान शनिदेव की पूजा करने के लिए करियाआमा जाते रहे हैं।
- लगातार तेल डालने की वजह से प्रतिमा पर धूल-मिट्टी की काफी मोटी परत जम चुकी थी।
- एक दिन इस प्रतिमा को साफ किया गया, तो वहीं शनिदेव के साथ उनकी पत्नी देवी स्वामिनी की भी प्रतिमा मिली।


बिना तेल चढ़ाए नहीं बढ़ती थी बैलगाड़ी

- पुराने समय में इलाके में बसे बैगा आदिवासी इस मंदिर को ओगन पाट के नाम से जानते थे। उस समय मंदिर के चारों ओर दीवार नहीं बनी थी।
- छत्तीसगढ़ी में ओगन का मतलब तेल से भरे बांस के टुकड़े से है। इसका उपयोग बैलगाड़ी के पहियों में लगातार तेल डालने के लिए किया जाता था।
- मान्यता अनुसार शनिदेवालय के समीप से गुजरते ही बैलगाड़ी रुक जाती थी। उस दौरान बैगा बांस के टुकड़े में भरे तेल को शनिदेव की प्रतिमा में चढ़ाते थे। तब बैलगाड़ी आगे बढ़ती थी।


पति-पत्नी मिलकर करते हैं यहां पूजा

- इस देवालय को देश का एकमात्र सपत्नीक शनिदेवालय का दर्जा मिला है। बाकी स्थानों पर शनिदेव की एकल प्रतिमा स्थापित है।
- इस शनिदेवालय की ख्याति इसलिए भी है, कि यहां पति-पत्नी दोनों एक साथ शनिदेव की पूजा कर सकते हैं। जबकि भारत के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक शिंगणापुर (महाराष्ट्र) में महिलाओं के प्रवेश पर काफी विरोध है।
- मैकल पर्वत से घिरे, जंगल के बीच और संकरी नदी के किनारे स्थापित हाेने के कारण इस शनि मंदिर का अपना टूरिज्म के एंगल से अपनी अहमियत है।

पांडवों के वनवास काल के दौरान हुई थी स्थापना

- प्राचीन बूढ़ा महादेव मंदिर के पुरोहित पंडित अर्जुन शर्मा के मुताबिक ग्राम करियाआमा में स्थापित शनिदेवालय पूर्वकालीन है। इसकी स्थापना पांडवों ने की थी।
- ऐसा माना जाता है कि वनवास काल के दौरान पांडवों ने कुछ समय भाेरमदेव के आसपास जंगल में भी बिताया था।
- उस समय भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर उन्होंने ग्राम करियाआमा में भगवान शनिदेव की प्रतिमा की स्थापना की थी।

दूर-दूर से आते हैं लोग

मान्यता अनुसार मनोकामना पूर्ति के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु ग्राम करियाआमा स्थित शनिदेवालय पहुंचते हैं। यहां हर साल जयंती पर भगवान शनिदेव का अभिषेक कर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा के बाद आस-पास के गांव के लोगों को खाना खिलाया जाता है। मंदिर समिति देवालय को विकसित करने का प्रयास कर रही है।

ये है छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा साल का वृक्ष, 1400 साल की उम्र में भी हरा-भरा

कोरबा जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर कोरबा ब्लाॅक के ग्राम सतरेंगा के ग्रामीण वृक्षों को देवता मानते हैं। 1400 साल पुराना यह साल वृक्ष आज भी हरा-भरा है। ग्रामीण विवाह के साथ कोई भी शुभ कार्य करने के पहले वृक्ष की पूजा करते हैं। वन विभाग ने वृक्ष को संरक्षित घोषित करते हुए चबूतरा बनाया है। तने की चौड़ाई 28 फीट 2 इंच व ऊंचाई 28 मीटर है।


जरूरत पड़ने पर काटते हैं पेड़

- गांव में 15 वर्षों से सरपंच धनसिंह कंवर का कहना है कि हरे भरे वृक्षों को काटने पर प्रतिबंध है।
- जरूरत पड़ने पर ग्रामीण सूखे पेड़ को काटते हैं। पर्यावरण साफ रखने के लिए पेड़ पौधों का होना जरुरी है। जिससे हमें कई तरह के फायदे भी मिलते हैं।
- वनोपज से परिवार समृद्ध होता है। साल वृक्ष की पूजा कई पीढ़ियों से होती आ रही है।
- अच्छी बारिश व फसल के लिए ग्रामीण धान चढ़ाकर पूजा करते हैं। साथ ही यहां के पानी को घर घर बांटा जाता है।


दो हजार साल तक जिंदा रहते हैं साल के वृक्ष

रिटायर्ड रेंजर एमके जायसवाल के मुताबिक साल वृक्ष की अधिकतम आयु दो हजार साल तक है। लेकिन कई तरह की बीमारियां होने से अधिकांश पेड़ 500 साल के भीतर ही नष्ट हो जाते हैं। सतरेंगा का साल वृक्ष अनूठा है जिसकी उम्र 1400 साल आंकी गई है। मातमार में भी 1000 साल पुराना साल वृक्ष है।’’

Source: Dainik Bhaskar

Wednesday, June 1, 2016

जलजला पॉइंट मैनपाट जहा धरती हिलती है

- छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में है मैनपाट। यहां के जलजली के चार एकड़ इलाके की खासियत यह है कि जमीन स्पंज की तरह हिलती है।

- इस जमीन पर कूदने पर स्पंज या गद्दे पर उछलने जैसा महसूस होता है।
क्या हैं धरती के हिलने का कारण
- लोकल लोगों का कहना है कि शायद कभी यहां वाटर सोर्स रहा होगा, जो वक्त के साथ ऊपर से सूख गया पर अंदरुनी जमीन दलदली रह गई। इसी वजह से इस पर कूदने से पूरी जमीन हिलती है।
- यह एक टेक्निकल टर्म 'लिक्विफैक्शन' का एक उदाहरण है। जियोलॉजिस्ट डॉ. निनाद बोधनकर के मुताबिक लिक्विफैक्शन इंगित करता है कि यहां भूकंप जैसा प्रभाव भी आ सकता है।
-पृथ्वी के इंटरनल प्रेशर और पोर स्पेस (खाली स्थान) में सॉलिड के बजाय पानी भरा हुआ है। इसलिए भी यह जगह दलदली और स्पंजी लगती है।
- वैसे यह इलाका देश के भूकंप संवेदी इलाकों में है।



ठिनठिनी पखना (पत्थर) अम्बिकापुर

छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर शहर से तकरीबन 12 किलोमीटर की दूरी पर दरिमा हवाई पट्टी के पास कई बड़े पत्थरों के बीच एक ऐसा पत्थर मौजूद है, जिससे मैटल की तरह आवाज आती है।
- कई अलग-अलग तरह के मैटल की आवाज आने के कारण लोग दूर-दूर से इस पत्थर को देखने आते हैं।
- इस पत्थर पर बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज में कोई अंतर नहीं पड़ता।
- इसी खासियत के कारण इस पत्थर को इलाके के लोग ठिनठिनी पखना कहते हैं।

ग्लेशियर युग का हो सकता है पत्थर
-इस विलक्षण पत्थर को हजारों वर्ष पहले अंतरिक्ष से आया उल्कापिंड, मेटेलिक स्टोन माना जाता है. इसे किसी भी पत्थर या धातु से प्रहार करने पर धात्विक आवाज उत्पन्न होती है.
- जियोलॉजिस्ट एक्सपर्ट विमान मुखर्जी ने बताया कि शायद यह पत्थर ग्लेशियर युग का है।
- उन्होंने बताया कि घुनघुट्टा नदी पर कई बड़े-बड़े पत्थर बिना किसी नुकसान के सालों से हैं। यह पत्थर भी उसी वक्त का हो सकता है।
- श्री मुखर्जी ने बताया कि फोनोलाइट के नेचर के कारण इस तरह के पत्थरों को ठोकने पर मेटल जैसी आवाज आती है।

- ये पत्थर अल्ट्राबेसिक रॉक के रूप में जाने जाते हैं। एक्ट्रेटिव बनाकर इस पत्थर को सहेजने से इलाके में टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। इसके लिए जरुरी परमिशन मिल चुकी है।
- नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ डिजाइन अहमदाबाद के एक्सपर्ट ने उसे खूबसूरत बनाने प्लान तैयार किया गया है, जिसमें खैरागढ़ यूनिवर्सिटी के आर्टिस्ट्स की मदद ली जाएगी।

तातापानी (बलरामपुर) में धरती अपने आप गर्म पानी उगलती है

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से तकरीबन 418 किमी दूर बलरामपुर डिस्ट्रिक्ट के तातापानी में धरती अपने आप गर्म पानी उगलती है।
- यह पानी इतना गरम होता है कि इसमें अंडे तक उबल जाते हैं और पोटली में बांधकर डाला गया चावल भी पक जाता है। लापरवाही बरतने पर हाथ जलने का खतरा बना रहता है।

- यह जगह टूरिस्ट प्लेस के तौर पर धीरे-धीरे मशहूर हो रही है। गवर्मेेट यहां पावर प्लांट लगाने का प्लान कर रही है।
- ताता का मतलब होता है गर्म। इसलिए इस गांव का नाम तातापानी रखा गया। पानी इतना गर्म है कि उससे धुआं (भाप ) निकलता रहता है।
- यहां पर पानी से अंडा उबाले हुए पानी जैसी गंध आती है।
- लोगों के मुताबिक इस पानी को ठंडा कर नहाने से स्किन डिसीसेज ठीक हो जाते हैं। दूर-दराज से लोग इसके लिए यहां नहाने पहुंचते हैं।

- यहां पांच साल पहले एक बोरवेल करवाया गया था। 320 फीट ही बोर हो पाया था कि प्रेशर के साथ गर्म पानी निकलना शुरू हुआ। जिसके बाद बोर करना बीच में ही बंद करना पड़ा।
- यहां जगह-जगह निकल रहे पानी को ठंडा करने के लिए कुंड बनवाए गए हैं। पानी के ठंडे होने के बाद लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। इसके बाद पानी नदी में बह जाता है।

Source: Dainik Bhaskar