Thursday, November 26, 2015

छत्तीसगढ़ की नदियां/Rivers of Chhattisgarh

प्रदेश में मुख्यतः चार अपवाह तंत्र महानदी, गंगा, गोदावरी, नर्मदा है। जिसके अंतर्गत महानदी, शिवनाथ,अरपा, इंद्रावती, सबरी, लीलागर, हसदो, मांड, पैरी तथा सोंढूर प्रमुख नदियां है। महानदी छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा है। बस्तर की नदियों को छोड़कर छत्तीसगढ़ की अन्य प्रमुख नदियां - शिवनाथ, अरपा, हसदो, सोंढूर, जोंक आदि महानदी में मिलकर इस नदी का हिस्सा बन जाती है। महानदी तथा इसकी सहायक नदियां पुरे छत्तीसगढ़ का 58.48 प्रतिशत जल समेट लेती है।

महानदी अपवाह तंत्र

छत्तीसगढ़ की गंगा के नाम से प्रसिद्ध महानदी धमतरी के निकट सिहावा पहाड़ी से निकलकर दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हुई बिलासपुर जिले को पार कर पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है तथा उड़ीसा राज्य से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। महानदी की कुल लंबाई 851 किलोमीटर है जिसका 286 किलोमीटर छत्तीसगढ़ में है। प्रदेश में इसका प्रवाह क्षेत्र धमतरी, महासमुन्द, दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर, जांजगीर-चांपा, रायगढ़ एवं जशपुर जिले में है।


शिवनाथ नदी

इस नदी का उद्गम स्थल राजनांदगांव जिले की अंबागढ़ तहसील की 624 मीटर ऊंची पानाबरस पहाड़ी में है। यह नदी उद्गम स्थल से 40 किमी की दूरी तक उत्तर की ओर बहकर जिले की सीमा पूर्व की ओर बहते हुए शिवरीनारायण के निकट महानदी में विलीन हो जाती है। शिवनाथ नदी राजनांदगांव जिले में 384 वर्ग किमी तथा दुर्ग जिलें में 22484 वर्ग किमी अपवाह क्षेत्र का निर्माण करती है। हाफ, आगर, मनियारी, अरपा, लीलागर, खरखरा, खारून, जमुनिया आदि इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं।


तांदूला नदी

यह शिवनाथ की प्रमुख सहायक नदी है। जिसका जन्म स्थल कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर तहसील के पहाड़ी में है।


हसदो नदी

यह मनेन्द्रगढ़ तहसील में कोरिया पहाड़ी के निकट रामगढ़ से निकलती है। चांपा से बहती हुई शिवरीनारायण से 8 मील की दूरी में महानदी में मिल जाती है। इसमें कटघोरा से लगभग 10-12 किमी पर प्रदेश की सबसे ऊंची तथा बड़ी मिनीमाता हसदो बांगो नामक बहुउद्देशीय परियोजना का निर्माण किया गया है।


खारून नदी

दुर्ग जिले के दक्षिण पूर्व से निकलकर 80 किमी उत्तर की ओर बहकर सिमगा के निकट सोमनाथ नामक स्थान पर शिवनाथ में मिल जाती है। यह नदी दुर्ग जिले में 19980 वर्ग किमी तथा रायपुर जिले में 2700 वर्ग किमी अपवाह क्षेत्र का निर्माण करती है।


जोंक नदी

यह महासमुन्द के पहाड़ी क्षेत्र से निकलकर रायपुर जिले में बहते हुए पूर्व की ओर महानदी के दक्षिणी तट पर स्थित शिवरीनारायण के पास महानदी में मिलती है। रायपुर जिलें में इसका अपवाह क्षेत्र 2480 वर्ग किमी है।

पैरी नदी

रायपुर जिले में बिन्द्रानवागढ़ के निकट स्थित भाटीगढ़ पहाड़ी (493मी) से निकलकर रायपुर जिले के दक्षिणी भाग में बहते हुए राजिम के निकट महानदी में मिलती है। रायपुर जिले में यह नदी 3000 वर्ग किमी क्षेत्र में अपवाह क्षेत्र का निर्माण करती है।


माण्ड नदी

यह नदी सरगुजा जिले की मैनपाट पठार के उत्तरी भाग से निकलती है। फिर रायगढ़ जिले के घरघोड़ा एवं रायगढ़ तहसील में बहती हुई जांजगीर-चांपा की पूर्वी भाग में स्थित चन्द्रपुर के निकट महानदी में मिल जाती है। कुरकुट और कोइराज इसकी सहायक नदियां हैं। इसका प्रवाह क्षेत्र वनाच्छित एवं बालुका प्रस्तरयुक्त है। रायगढ़ जिले में यह नदी 14 किमी की दूरी तय करती है। जहां यह 3233 वर्ग किमी तथा सरगुजा जिले में 800 वर्ग किमी अपवाह क्षेत्र का निर्माण करती है।

ईब नदी

इसका उद्गम जशपुर जिले के पण्डरापाट नामक स्थान पर खुरजा पहाड़ी से हुआ है। महानदी की प्रमुख सहायक नदी है। ढाल के अनुरूप उत्तर से दक्षिण की ओर जशपुर जिले में बहते हुए उड़ीसा राज्य में प्रवेश कर हीराकुंड नामक स्थान से 10 किमी पूर्व महानदी में मिलती है। मैना, डोंकी इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं। इसका अपवाह क्षेत्र सरगुजा के 250 वर्ग किमी तथा रायगढ़ जिले के 3546 वर्ग किमी में है।

केलो नदी

इसका उद्गम रायगढ़ जिले की घरघोड़ा तहसील में स्थित लुडे़ग पहाड़ी से हुआ है। घरघोड़ा एवं रायगढ़ तहसीलों में उत्तर से दक्षिण की ओर बहते हुए उड़ीसा राज्य के महादेव पाली नामक स्थान पर महानदी में विलीन हो जाती है।

बोराई नदी

इस नदी का उद्गम स्थल कोरबा के पठार से हुआ है। यह नदी आगे उद्गम स्थल से दक्षिण दिशा में बहती हुई महानदी में विलिन हो जाती है। शिवनाथ की प्रमुख सहायक नदी है।

दूध नदी

इसका उद्गम कांकेर से लगभग 15 किमी की दूरी पर स्थित मलाजकुण्डम पहाड़ी से हुआ है, जो पूर्व की ओर बहते हुए महानदी में मिल जाती है।

कन्हार नदी

इसका उदगम् जसपुर जिले के सन्ना तहसील के लैमुरहा ग्राम से हुआ है.जिस पर छत्तीसगढ़ राज्य की खुटपाली मध्यम सिंचाई परियोजना(बलरामपुर)निर्माणाधीन है .एवं छ.ग,उ.प्र,झारखंड सीमा पर कनहर बहुउद्देसी सिंचाई परियोजना(अमवार)निर्माणाधीन है

रिहन्द नदी

यह नदी सरगुजा जिले के मैनपाठ के निकट 1088 मीटर ऊंची मातरिंगा पहाड़ी से निकलती है। अपनी उद्गम स्थल से उत्तर की ओर बहती हुई यह सरगुजा बेसीन की रचना करती है। इसी कारण उसे सरगुजा जिले की जीवन रेखा कहा जाता है। यह अपवाह क्रम की सबसे बड़ी (145 किमी) नदी है। इस पर मिर्जापुर क्षेत्र में रिहन्द नामक बांध बनाया गया है। रिहन्द बेसीन में बहने के पश्चात अन्ततः उत्तरप्रदेश में सोन नदी में विलिन हो जाती है। घुनघुटा, मोरनी, महान, सूर्या, गोबरी आदि इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं।

गोदावारी अपवाह तंत्र

गोदावरी महाराष्ट्र प्रदेश के नासिक जिले के त्रयम्बक नामक 1067 मीटर ऊंचे स्थान से निकलकर छत्तीसगढ़ की दक्षिणी सीमा बनाती हुई बहती है। ‘दक्षिण की गंगा‘ नाम से विख्यात यह नदी प्रदेश के बस्तर जिले 4240 वर्ग किमी तथा राजनांदगांव जिले में 2558 वर्ग किमी अपवाह क्षेत्र बनाती है, तथा लगभग 40 किमी लंबी दूरी में बहती है। इन्द्रावती, शबरी, चिंता, कोटरी बाघ, नारंगी, मरी, गुडरा, कोभरा, डंकनी और शंखनी आदि इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं।

इन्द्रावती नदी

यह गोदावरी की प्रधान सहायक तथा बस्तर जिले के सबसे बड़ी नदी है। इसका उद्गम उड़ीसा राज्य के कालाहांडी पठार से हुआ है। प्रदेश के बस्तर जिले में लगभग 370 किमी की दूरी तय करते हुये पूर्व से पश्चिम दिशा में बहते हुये यह गोदावरी में विलीन हो जाती है। यह नदी जगदलपुर से लगभग 35 किमी दूर पश्चिम में चित्रकोट जल-प्रपात की रचना करती है।

कोटरी नदी

यह नदी दुर्ग जिले की उच्च भूमि से निकलकर कांकेर जिले में इंद्रावती नदी में मिल जाती है। इसका सर्वाधिक अपवाह क्षेत्र राजनांदगांव जिले में है।

शबरी नदी

इसका उद्गम दंतेवाड़ा के निकट बैलाडीला पहाड़ी है, जो बस्तर की दक्षिणी पूर्वी सीमा में बहती हुई आन्ध्रप्रदेश के कुनावरम् के निकट गोदावरी में मिल जाती है। बस्तर जिले में यह 150 किमी लंबाई में बहती है। जिससे 5680 किमी अपवाह क्षेत्र का निर्माण करती है।

डंकिनी और शंखिनी नदी

ये दोनों इंद्रावती की प्रमुख सहायक नदियां हैं। डंकिनी नदी का उद्गम डांगरी-डोंगरी तथा शंखिनी नदी का उद्गम बैलाडीला पहाड़ी से हुआ है। दंतेवाड़ा में ये दोनों नदियां आपस में मिल जाती हैं।


बाघ नदी

इस नदी का उद्गम राजनांदगांव जिले में स्थित पठार से हुआ है। यह नदी छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र राज्यों के बीच की सीमा बनाती है।


नारंगी नदी

यह बस्तर जिले की कोंडागांव तहसील से निकलती है। तथा चित्रकूट प्रपात के निकट इन्द्रावती में विलीन हो जाती है।

Wednesday, November 25, 2015

भोरमदेव मंदिर कवर्धा (Bhoramdeo Temples Kawardha)

परिचय:
छत्तीसगढ़ में कवर्धा केवल अपने स्वयं के आकर्षण और सुंदरता के लिए बहोत ही प्रसिद्ध है, और कवर्धा के सैर के लिए अपने आगंतुकों एक अच्छा अवसर भी प्रदान करती हैं। कवर्धा के दौरे मे सबसे सुंदर और स्मारक स्थान है शिव मंदिर भोरमदेव ।

•शिव भोरमदेव मंदिर का इतिहास:
भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के कवर्धा जिले मे शिव भोरंदेओ मंदिर की स्थापना 11 वीं शताब्दी ई. मे किया गया था।
छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध भोरमदेव शिव मंदिर का निर्माण नागवंशी शासक गोपाल देव ने 1089 ई. के लगभग करवाया था जो खजुराहो और कोणार्क की कला का संगम है |
भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ की स्थापत्य एवं मूर्ति कला का अनुपम उदारहण है|

•शिव भोरमदेव मंदिर का विवरण:
शिव भोरमदेव मंदिर के प्रमुख आकर्षण, यहा के पत्थर पर नक्काशियों से तरासे विभिन्न देवी - देवताओं के चित्रिण से हैं। कवर्धा में इन मंदिरों के अलावा, भोरंदेओ मंदिर जो एक आम ग्रोव के बीच में स्थित है बहोत ही प्रसिद्ध है।
यहा के संरचनाओं की कोणीय अनुमान वास्तुकला के स्थानीय शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पीछे हटते 'पर्वत रेंज' शैली है कि शिखर में पाये जाते है। यहा खजुराहो में मंदिरों की और कम अवरुद्ध वक्रीय फार्म के एक संलयन है। कवर्धा के पास इन भोरमदेव शिव मंदिर का एक शानदार मूर्तियां देख कर आपने मन को हर्षित कर सकते है।
कवर्धा में शिव भोरमदेव मंदिर शहर से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। यह जगह रायपुर से, जो छत्तीसगढ़ की राजधानी शहर है के उत्तर में स्थित है।

कैसे पहुचे  (How To Reach)
शिव भोरमदेव मंदिर जो की छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले मे स्थित है वह जाने के लिए सबसे अच्छा साधन है ट्रेन, बस, और फिर खुद की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था

छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य

पंथी नृत्य (Panthi Dance)

ये छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध लोकनृत्य है |यह सतनाम पंथियों द्वारा किया जाता है यह नृत्य जैत खम्भ की स्थापना पर उसके चारो ओरकिया जाता है| पंथी नृत्य में गुरूघासीदास की चरित्र गाथा को बड़े ही मधुर राग से गया जाता है |यह बड़ा ही आकर्षक नृत्य है |


करमा नृत्य (Karma Dance)

ये छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का प्रमुख लोकनृत्य है |करम देवता को प्रसन्न करने के लिए सामूहिक रूप से आदिवासी स्त्री-पुरुष इस नृत्य को करते है |करमा नृत्य के मुख्यत चार रूप है - करमा खरी,करमा खाय,करमा झुलनी और करमा हलकी|

गौरा नृत्य (Gaura Dance)

ये छत्तीसगढ़ की माड़िया जनजाति का प्रसिद्ध लोकनृत्य है |
नयी फसल पकते समय माड़िया जनजाति के लोग गौर नमक पशु के सिंग को कौड़ियो  से सजाकर सर पर धारण कर अत्यंत आकर्षक व प्रसन्नचित्त मुद्रा  में नृत्य करते है |
यह छत्तीसगढ़ में नहीं बल्कि पुरे विश्व के प्रसिद्ध लोकनृत्यों में से एक है |

मांदरी नृत्य (Mandari Dance)

मांदरी नृत्य घोटुल का प्रमुख नृत्य है|इसमें मांदर की करताल पर नृत्य किया जाता है |पुरुष नर्तक इसमें हिस्सा लेते है |दूसरी तरह के मांदरी नृत्य में चिटकुल के साथ युवतियों भी हिस्सा लेती है |यह घोटुल का प्रमुख नृत्य है |इसमें कम से कम एक चक्कर मांदरी नृत्य अवश्य किया जाता है |मांदरी नृत्य में शामिल हर व्यक्ति कम से कम एक थाप के संयोजन को प्रस्तुत करता है ,जिस पर पूरा समूह नृत्य करता है |

गेंडी नृत्य (Gendi Dance )

यह मुड़िया जनजाति का प्रिया नृत्य है | जिसमे पुरुष लकड़ी की बानी हुई ऊँची गेंडी पर चढ़कर तेज गति से नृत्य करते है |इस नृत्य में शारीरिक कौशल व संतुलन के महत्व को प्रदर्शित किया जाता है |सामान्यतः घोटुल के अंदर व बाहर इस नृत्य को विशेष आनंद के साथ किया जाता है |

Rawat Nacha is a form of dance performed by the Yaduvanshis (clan of Yadu) where the dancers praise Lord Krishna on the occasion of Dev Uthani Ekadashi. As per the Hindu calendar, it is the eleventh day after the festival of Diwali.
सुआ नृत्य (Sua Dance)

यह मूलतः महिलाओ और किशोरियों का नृत्य पर्व है |
इस नृत्य के समापन पर शिव-गौरी विवाह का आयोजन होता है |इस गौरी नृत्य भी कहा जाता है |


Tuesday, November 24, 2015

चित्रकोट जलप्रपात

चित्रकोट जलप्रपात भारत के छत्तीसगढ़ प्रदेश मे स्थित एक जलप्रपात है। इस जल प्रपात की ऊँचाई 90 फुट है।
जगदलपुर से 39 किमी दूर इन्द्रावती नदी पर यह जलप्रपात बनता है। समीक्षकों ने इस प्रपात को आनन्द और आतंक का मिलाप माना है। 90 फुट उपर से इन्द्रावती की ओजस्विन धारा गर्जना करते हुये गिरती है। इसके बहाव में इन्द्रधनुष का मनोरम दृश्य, आल्हादकारी है। यह बस्तर संभाग का सबसे प्रमुख जलप्रपात माना जाता है। जगदलपुर से समीप होने के कारण यह एक प्रमुख पिकनिक स्पाट के रुप में भी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। अपने घोडे की नाल समान मुख के कारण इस जाल प्रपात को भारत का निआग्रा भी कहा जाता है।
                                             तस्वीर साभार- अंजार नबी

यहाँ इन्द्रावती नदी विस्तारित होकर मनमोहक जलप्रपात का निर्माण करती है। इसे बस्तर का नियाग्रा भी कहा जाता है। फ्लड लाईट में जलप्रपात को देखना जहाँ अलग ही अनुभव प्रदान करता है वहीं पर्यटन विभाग की पूर्णसुविधा युक्त हट में रूकने का आनंद ही अलग है। चित्रकोट जलप्रपात से 10 किलोमीटर की दूरी पर तामड़ाघुमड़ जलप्रपात है, तामड़ाघुमड़ जलप्रपात में एक छोटी सरिता सीधे लगभग 100 फिट की ऊँचाई से निचले भाग में गिरकर एक मनोरम जलप्रपात का निर्माण करती है। प्रपात को नीचे से उतरकर देखना अच्छा लगता है किंतु उतरने का मार्ग दुर्गम होने के कारण अतिरिक्त सावधानी रखना आवश्यक होता है।

दलपत सागर झील बस्तर

•दलपतसिंह सागर झील का परिचय:
बस्तर जिले के एक बड़े क्षेत्र साल, बांस, सीसम और सागौन जैसे पेड़ों से भरा जंगल भारी अंधेरे में है। बस्तर के कुछ पहाड़ों, गुफाओं, पहाड़ी, पार्क और झरने ये सब इनके घर है। वास्तव में, बस्तर में झील और झरने, विशाल पर्यटकों के आकर्षण हैं। इस क्षेत्र की कई झीलों के बीच, पर जाने लायक एक जगह दलपतसिंह सागर झील है।

•दलपतसिंह सागर झील का इतिहास:
भारत के छत्तीसगढ़ राज्य बस्तर मे दलपतसिंह सागर झील सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। यह राजा दलपतसिंह देव काकतीय द्वारा 400 साल पहले से भी अधिक का निर्माण किया गया था। यहा पर बारिश का पानी एकत्र हो कर फसल के लिए उपयोग लाया जाता है।

•दलपतसिंह सागर झील का विवरण:
बस्तर के दलपतसिंह सागर झील इंद्रावती नदी जो जगदलपुर के माध्य से गुजरता है पर बना है। दलपतसिंह सागर, 350 हेक्टेयर में फैले छत्तीसगढ़ के राज्य के लिए गर्व के साथ सबसे बड़ा कृत्रिम झील है। इस झील को मुख्य रूप से बारिश के पानी और फसल के लिए बनाया गया था। हालांकि, वर्तमान में, यह मछलियों का एक प्रमुख स्रोत है। अगर आप यहा सुबह जल्दी ही उठ जाते है, तो आप इस जगह पर समूह मछली पकड़ने के कार्य का आनंद लेते देवता की पूजा में शामिल हो सकते हैं। 

कैसे पहुचे

दलपतसिंह सागर झील जो की छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले मे स्थित है वह जाने के लिए सबसे अच्छा साधन है ट्रेन, बस, और फिर खुद की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था —

महामाया मंदिर,रतनपुर

Mahamaya Temple is temple dedicated to dual Goddess Lakshmi & Saraswati, located in Ratanpur and is one of the 52 Shakti Peethas, shrines of Shakti, the divine feminine, spread across India.Ratanpur is a small city, full of temples and ponds, situated around 25 km from district Bilaspur of Hamar chhattisgarh.




History 

Built in the 12–13th century, the temple is dedicated to the Goddess Mahamaya.Kalachuri dynasty of Tripuri (near Mandala, Madhya Pradesh, India) was a powerful dynasty of Hindu Kings. One section of this dynasty called as Haihai, which ruled Mahakoshal and Chhattisgarh from 9th century to 18th century.This temple was built during the reign of Kalchuri King Ratnadev I, founder of Haihaiyavansi Kingdom having its capital at Ratanpur.
It is believed that the temple was built at the spot where the king Ratandev I had darshan of council of goddess Kali. Originally the temple was for three goddesses viz Maha Kali, Maha Lakshmi and Maha Saraswati. Later, Maha Kali left the old temple. Still later, a new (current) temple was built by king Bahar Sai which was for goddess Maha Lakshmi and goddess Maha Saraswati. This temple was built in vikram samvat 1552 (1492 AD).There are ponds near the temple. There are also temples of Shiva and Hanuman within the campus. Traditionally Mahamaya is the Kuldevi of Ratanpur state.


How to Reach
Nearest Railway Station :Bilaspur Jn.(Approx. 25 Km )
Nearest Airport : Swami Vivekanand Airpot,Raipur (Approx. 157 Km )

Sunday, November 22, 2015

ठिनठिनी पत्थर,अम्बिकापुर

प्रकृति का एक अजूबा, "ठिनठिनी पत्थर"
अम्बिकापुर नगर से 12 किमी. की दुरी पर दरिमा हवाई अड्डा के पास बडे - बडे पत्थरो का समुह है। इन पत्थरो को किसी ठोस चीज से ठोकने पर आवाजे आती है। सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि ये आवाजे विभिन्न धातुओ की आती है। इस विलक्षणता के कारण इस पत्थरो को अंचल के लोग ठिनठिनी पत्थर कहते है।यह प्रकृति का एक अजूबा ही है।



Saturday, November 21, 2015

Battisa Temple,Jagdalpur

It is an ancient monument at Barsur, situated at about 100 kms from  Jagdalpur and about 33 kms from Dantewada via Gidam. The reason behind its name of Battisa Mandir is that there  are two temple facing east direction having a common Mandapa based upon  32 pillars. Battisa Temple is preserved by Archaeology department of Chhattisgarh. The other attractions at Barsur are Mama-Bhanjaa temple,  Chandraditya temple and a mammoth statue of Lord Ganesha. The most  attractive spot is one vast pond of pre-historical days.

बागमुंडी झारन

बास्तानार की घाटी अपने में कई आश्चर्य समेटे हुए है......जो हमारे सामने होते हुए भी हम उनसे अनभिज्ञ रहते है ......बास्तानार घाटी में बाग़मुंडी पनेड़ा ग्राम के पास ऐसा ही एक आश्चर्य है जिसे स्थानीय जन "बागमुंडी झारन " के नाम से पुकारते है ! कहने को तो यह झरना एक बरसाती नाले की तरह दिखने वाला एक सामन्य सा नाला दिखाई पड़ता है , जो बाकी मौसम में सुख जाता है.....पर वर्षा ऋतू में इसका सौंदर्य रमणीय होता है ! और लोग इसे घाटी से गुजरते हुए निहार सकते है !

बस्तर पैलेस

भारत के नक्शे में छत्तीसगढ़ राज्य का एक जिला जो रोचक और दुर्लभ दुनिया के पर्यटन के विकल्प और ऐतिहासिक पर्यटन पहलुओं से भारत को अच्छी तरह से जोड़ता है वह नाम है बस्तर। यहा का इतिहास एक प्रमुख भाग के लिए एक समय के विभिन्न बिंदुओं पर विभिन्न जनजातियों द्वारा संरचनाओं और स्मारक से भरा पड़ा है। यहा का बस्तर पैलेस सबसे अधिक लोकप्रिय और सुंदर पर्यटन स्थल है।
सागौन, साल और सीसम की मोटी हरी जंगलों, बांस और दुर्लभ पौधों की झाड़ियों, पहाड़ों मे पानी की धाराओं और पर्वतमाला, क्रिस्टल झरने और पानी की प्रसार के साथ एक परिपूर्ण शहर, बस्तर जो आपकी यात्रा के हर पल को रोचक और यादगार से भर देगा।
बस्तर पैलेस, जो अतीत के आदिवासियों के द्वारा बनाया शानदार स्थल है। यहा आप को एक बेहतर कला और वास्तुकला के कई अभिव्यक्तियाँ की झलकिया देखनों को मिलेगी। उज्ज्वल सफेद निर्माण और तत्कालीन राजाओं और शासकों के शौर्य और वीरता की भी झलकिया आप यहा देखा सकते है। यहा विशेष रूप से पर्यटन गंतव्य के लिए अच्छी सड़क और रेल विकल्प के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।

हमर छत्तीसगढ़

आप सभी का स्वागत है हमर छत्तीसगढ़ के नए वेबसाइट में |