Saturday, January 9, 2016

1000 साल पुराना मंदिर दूधाधारी मठ,रायपुर

राजधानी के 1000 साल पुराने दूधाधारी मठ के संस्थापक बलभद्र दास महंत हनुमान भक्त थे और एक दिन अचानक वे अंतरध्यान हो गए। तब से लेकर अब तक मठ के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय मंदिर में बने उनके समाधिस्थल में ही लिए जाते हैं। वर्तमान महंत श्यामसुंदर दास जी की राजनीति में आने का फैसला भी यहीं लिया गया।



समाधि वाली जगह सभी बड़े फैसले लेने की है परंपरा
मंदिर परिसर में महंत बलभद्र दास की समाधि है। इसी जगह सभी बड़े फैसले लेने की परंपरा है। कहा जाता है कि बलभद्र दास एक दिन सुबह अचानक अंतरध्यान हो गए। उनके शिष्यों ने उन्हें सुबह टहलते हुए देखा था। जब वे कहीं नहीं मिले तो मान लिया गया कि उन्होंने समाधि ले ली है। इसके बाद उनकी समाधि स्थल का निर्माण करवाया गया और आज भी वहीं सभी फैसले लिए जाते हैं।

दूधाधारी मठ को लेकर एक और कहानी प्रचलित है। मठ के संस्थापक बलभद्र दास महंत हनुमान जी के बड़े भक्त थे। एक पत्थर के टुकड़े को वे हनुमान जी मानकर श्रद्धा भाव से पूजा करने लगे। वे अपनी गाय सुरही के दूध से उस पत्थर को नहलाते और फिर उसी दूध का सेवन करते थे। इस तरह उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया और जीवन पर्यन्त दूध का सेवन किया। इस तरह बलभद्र महंत दूध आहारी हो गए। बाद में जगह दूधाधारी मठ नाम से जाना गया।

राजस्थान के झींथरा नामक स्थल के संत गरीबदास ने यहां अपना डेरा जमाया था, उन्हीं की परंपरा के संत बलभद्र दास हुए। बलभद्र दास का जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले के आनंदपुर में पंडित शंभूदयाल गौड़ के पुत्र के रूप में हुआ था लेकिन उनकी कार्यस्थली छत्तीसगढ़ का रायपुर था। वे भ्रमण करते हुए पहले महाराष्ट्र और फिर छत्तीसगढ़ आ गए। उनके चमत्कारों से प्रभावित होकर अनेक राजा-महाराजा उनके शिष्य हो गए। भंडारा जिले के पावनी में महंत गरीबदास द्वारा निर्मित श्रीराम जानकी मंदिर में वे काफी दिनों तक रहे। यहीं उन्होंने गरीबदास को अपना गुरु बनाया और बालमुकुंद से बलभद्र दास हो गए। इसके बाद वे रायपुर आ गए।

सन् 1610 में दूधाधारी मठ का निर्माण राजा रघुराव भोसले ने बलभद्र दास के लिए करवाया था। मठ का अपना प्राचीन इतिहास रहा है। इस मठ में कई देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें बालाजी मंदिर, संकट मोचन हनुमान मंदिर, रामपंचायतन और वीर हनुमान मंदिर प्रमुख हैं। वैष्णव संप्रदाय से संबंधित इस मंदिर में रामायण कालीन दृश्यों का शिल्पांकन आकर्षक तरीके से किया गया है। मंदिर में मराठाकालीन पेंटिंग आज भी मौजूद हैं।

यह मठ रामानंद समुदाय से संबद्ध है। मठ के दो भाग हैं, एक मेंं भगवान बालाजी स्थापित हैं और दूसरा भाग राम पंचायतन को समर्पित है। प्रदेश के विभिन्न भागों की कलाकृतियां यहां देखी जा सकती है। पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार मठ के भवन का वास्तु-शास्त्र उड़ीसा शैली से प्रभावित है तथा यहां का अलंकरण मराठा शैली के समान है। इतिहासकारों का कहना है कि मंदिर के निर्माण में सिरपुर से लाई गई पुरा सामग्री का प्रयोग किया गया है।

साभार : दैनिक भास्कर समाचार पत्र 

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