Thursday, April 21, 2016

गोपेश्वर शिव-हनुमान मंदिर,ग्राम सिलतरा-अकोली

देश में केवल दो ही स्थान पर विराजमान है इस तरह की प्रतिमा। मंदिर में कूलिंग सिस्टम नहीं होने के बावजूद पिघलती नहीं मूर्ति।

 यहां के ग्राम सिलतरा-अकोली में गोपेश्वर शिव-हनुमान मंदिर में लोग मक्खन से बनी हनुमान की मूर्ति की पूजा करते हैं। मंदिर में किसी तरह का कूलिंग सिस्टम नहीं होने के बावजूद मूर्ति का नहीं पिघलना लोगों को हैरान करता है। प्रदेश में यह अपनी तरह की एकमात्र अनूठी मूर्ति है।
माखन से बनी मूर्ति ढाई फीट की हो गई
मूर्ति की स्थापना करने वाले परिवार के सदस्य ८० वर्षीय खेदूराम यादव का कहना है कि मक्खन से बनी हनुमान की दूसरी सात फीट की मूर्ति महाराष्ट्र के जलगांव से २० किलोमीटर दूर ताप्ती नदी के किनारे स्थापित है। वहीं से मूर्ति का थोड़ा अंश लाकर वर्ष-२००७ में यहां स्थापना की गई, जिसकी ऊंचाई ढाई फीट है। हर मंगलवार और शनिवार को मूर्ति पर मक्खन और सिंदूर का लेप लगाया जाता है।

1663 का है मंदिर
यादव के मुताबिक गोपेश्वर शिव-हनुमान मंदिर की स्थापना उनके पूर्वज पंडित ने 1663 में की थी। मंदिर में शिवजी परिवार समेत विराजे हैं। लोग इसे गोपेश्वर शिव हनुमान मंदिर के नाम से जानते हैं। मदिर में कांच की आकर्षक नक्काशी की गई है।

Tuesday, April 19, 2016

धरोहरों के लिए मशहूर है गांडागौरी पहाड़ी, देवकुंड में सालभर रहता है पानी

बस्तर संभाग का प्रवेश द्वार चारामा विकासखंड पुरातात्विक धरोहरों के लिए विख्यात है। फिर वह उड़कुड़ा की पहाड़ी पर आदिमानवों के प्रागैतिहासिक कालीन शैलचित्र हो या फिर गोटीटोला स्थित पहाड़ी और खैरेखेड़ा की पहाड़ी के शैलचित्र। ग्राम गांडागौरी में पहाड़ी पर पत्थरों के बीच 12 फीट गहरा कुआं भी आकर्षण का केंद्र है। देवकुंड कहलाने वाला यह कुआं ऊंचाई और गर्मियों में भी न सूखने के कारण लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है।


                 लखनपुरी. गांडागौरी पहाड़ी पर 12 फीट गहरा कुआं। इसका पानी गर्मी में भी नहीं सूखता।

बस्तर वनांचल विविधताओं का अंचल है। यहां विशाल वन क्षेत्र है, जिसमें प्रचुर मात्रा में लौह अयस्क व अन्य खनिज हैं। बस्तर में पुरातत्व के महत्वपूर्ण स्थल भी हैं। चारामा विकासखंड अपने इन्हीं पुरातात्विक स्थलों के लिए जाना जाता है। अंचल में कई स्थानों पर प्राचीन मानवों के बनाए मेगालीथ परंपरा के अवशेष मिलते हैं।
इसी क्रम में ग्राम गांडागौरी में भी प्राचीन शैलचित्र, प्राकृतिक जलकुंड, पत्थरों पर बनाए गए प्राचीन छिद्र हैं। यहां सीधी ऊंचाई वाली पहाड़ी पर पत्थरों के बीच 12 फीट गहरा कुआं है। इसमें भरी गर्मी में भी पानी रहता है। आसपास के ग्रामीण इसे देवकुंड कहते हैं। पहाड़ पर और भी स्थलों के कारण इसका काफी महत्व है।

पहाड़ के नीचे देवी मंदिर है। इसमें हर नवरात्र लोग पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं। गांव के पुजारी सुनाराम सेवता ने बताया कि पहाड़ के नीचे राधा-कृष्ण प्रतिमा थी, जिसमें से राधा की मूर्ति चोरी हो गई है। पहाड़ी के सामने ही मां के चरण पादुका मौजूद हैं। वहीं ऊपर कुआं जिसे बावली कहते हैं, यहां महिलाएं नहीं जाती हैं।

गांव के नाम को लेकर है कई धारणाएं
मान्यता है कि गांडा गौरी का नाम पहले गढ़ गौरी रहा होगा। गढ़ का मतलब पहाड़ और गौरी का अर्थ मां पार्वती से रहा होगा। धीरे-धीरे इसका अपभ्रंश होता गया और आज इसे गांडागौरी के नाम से जाना जाता है।

शेषनाग और चट्‌टा पर बने छेद करते हैं आकर्षित
यहां विशाल पीपल के पास शेषनाग की आकृति वाली चट्टान है, जिसकी पूजा की जाती है। पहाड़ी के नीचे चट्टान पर गोलाकार मानव निर्मित एक ही व्यास व गहराई वाले कई छेद हैं। इसके उत्तर में सीधी कतार में इसी तरह के और भी छेद हैं। माना जाता है कि आदि मानव दिशा, सूर्योदय, सूर्यास्त, मौसम, जलवायु, काल, समय की गणना के लिए इनका उपयोग करते थे। हालांकि स्थानीय मान्यता है कि मूसल से धान कूटने के लिए बनाया गया होगा।


पहाड़ी के साथ गांव में भी मिलते हैं शैलचित्र
गांडागौरी की पहाड़ी के प्रस्तर खंड में शैलचित्र भी मौजूद हैं, जिसे लोग खून के दाग मानते हैं। इसी तरह के शैलचित्र आस-पास के गांव उड़कूड़ा, खैरखेड़ा व गोटीटोला में भी हैं। इन गावों की सीमाएं भी एक-दूसरे से मिलती हैं।

संभावना है कि प्रागैतिहासिक काल में यहां आदिमानव रहते थे। गांव में जहां मवेशियों का गोठान है, वहां प्रस्तर खंडों को एक निश्चित आकार में रखा गया है। इसे मेगालीथ परंपरा का होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

मां सती के रूप की पूजा की जाती है

मान्यता है कि मां सती का शरीर खंडित होकर जहां-जहां गिरा, वहां शक्तिपीठ बने। भारत में 52 शक्तिपीठ का उल्लेख धर्म ग्रन्थों में किया गया है। मां सती का जो अंग जहां गिरा, वहां उस रूप में पूजा की जाती है।
यहां प्राचीन अवशेषों के साथ पहाड़ी के ऊपर पत्थर में योनि की अाकृति बनी हुई है। इसे धार्मिक आस्था के रूप में लोग मां सती की योनि मानकर पूजा-अर्चना करते हैं। असम गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर योनि पीठ जैसी आकृति ही यहां के पत्थर में है।

साल में एक बार खिलता है पांचफूल

गांडागौरी पहाड़ी के नीचे प्राकृतिक फूल मिलता है, जो फागुन में साल में एक बार खिलता है। लोग इसे पांचफूल के नाम से जानते हैं। इसमें पूरे पेड़ में फूल आते हैं।



गांडागौरी में पत्थर में बने छेद।

शेषनाग की आकृति का विशाल पत्थर।

पहाड़ी के साथ गांव में भी मिलते हैं शैलचित्र।

Wednesday, April 13, 2016

दुनिया में इकलौता अनोखा मंदिर जहां बजरंग बली की होती है स्त्री रुप में पूजा गिरजाबंध हनुमान मंदिर ,रतनपुर

एक ऐसा अनोखा मंदिर जहां बजरंग बली की होती है स्त्री रुप में पूजा गिरजाबंध हनुमान मंदिर ,रतनपुर

पवन पुत्र, राम भक्त हनुमान को युगों से लोग पूजते आ रहे हैं. उन्हें बाल ब्रह्मचारी भी कहा जाता है जिस कारण स्त्रियों को उनकी किसी भी मूर्ति को छूने से मना किया गया है। वे देवता रूप में विभिन्न मंदिरों में पूजे जाते हैं लेकिन एक ऐसा मंदिर भी है जहां पर हनुमान को पुरुष नहीं बल्कि स्त्री के रूप में पूजा जाता है।

दुनिया में इकलौता अनोखा मंदिर
गिरजाबंध हनुमान मंदिर ,रतनपुर में एक अति प्राचीन मंदिर है, जहाँ हनुमान कि स्त्री रूप में पूजा होती है।आपको सुनकर आश्चर्य लगेगा, लेकिन दुनिया में एक मंदिर ऐसा भी है जहां हनुमान पुरुष नहीं बल्कि स्त्री के वेश में नजर आते हैं। यह प्राचीन मंदिर बिलासपुर के पास है। हनुमानजी के स्त्री वेश में आने की यह कथा कोई सौ दौ सौ नहीं बल्कि दस हजार साल पुरानी मानी जाती है।
हर मुराद होती है पूरी
यह देवस्थान पूरे भारत में सबसे अलग है। इसकी मुख्य वजह मां महामाया देवी और गिरजाबंध में स्थित हनुमानजी का मंदिर है। खास बात यह है कि विश्व में हनुमान जी का यह अकेला ऐसा मंदिर है जहां हनुमान नारी स्वरूप में हैं। इस दरबार से कोई निराश नहीं लौटता। भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

बहुत प्राचीन है मंदिर का इतिहास
रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था । पौराणिक और एतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस देवस्थान के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह लगभग दस हजार वर्ष पुराना है।

राजा को सपने में दिया मंदिर निर्माण का आदेश
रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू ने सपने में देखा कि संकटमोचन हनुमान जी उनके सामने हैं, भेष देवी सा है, पर देवी है नहीं, लंगूर हैं पर पूंछ नहीं जिनके एक हाथ में लड्डू से भरी थाली है तो दूसरे हाथ में राम मुद्रा अंकित है। कानों में भव्य कुंडल हैं। माथे पर सुंदर मुकुट माला। अष्ट सिंगार से युक्त हनुमान जी की दिव्य मंगलमयी मूर्ति ने राजा से एक बात कही।
हनुमानजी ने राजा से कहा कि हे राजन मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूं। तुम्हारा कष्ट अवश्य दूर होगा। तू मंदिर का निर्माण करवा कर उसमें मुझे बैठा। मंदिर के पीछे तालाब खुदवाकर उसमें स्नान कर और मेरी विधिवत् पूजा कर। इससे तुम्हारे शरीर में हुए कोढ़ का नाश हो जाएगा। एक रात स्वप्न में फिर हनुमान जी आए और कहा मां महामाया के कुण्ड में मेरी मूर्ति रखी हुई है। तू कुण्ड से उसी मूर्ति को यहां लाकर मंदिर में स्थापित करवा। तब राजा को मूर्ति को तालाब से निकालकर स्थापना करवाई।

अदभुत चमत्कारिक प्रतिमा है बजरंग बली की
इसका मुख दक्षिण की ओर है और साथ ही मूर्ति में पाताल लोक़ का चित्रण भी है।मूर्ति में हनुमान को रावण के पुत्र अहिरावण का संहार करते हुए दर्शाया गया है।यहां हनुमान के बाएं पैर के नीचे अहिरावण और दाएं पैर के नीचे कसाई दबा हुआ है। हनुमान के कंधों पर भगवान राम और लक्ष्मण की झलक है उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में लड्डू से भरी थाली है।

Monday, April 11, 2016

चंद्रहासिनी देवी का मंदिर चंद्रपुर, जांजगीर -चांपा

चंद्रहासिनी देवी का मंदिर चंद्रपुर, जांजगीर -चांपा जिले में स्थित है। महानदी के तट पर स्थित सिद्धपीठ मंदिर मां चंद्रहासिनी के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ बने पौराणिक व धार्मिक कथाओं की झाकियां समुद्र मंथन, महाभारत की द्यूत क्रीड़ा आदि , मां चंद्रहासिनी के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है। चारों ओर से प्राकृतिक सुंदरता से घिरे चंद्रपुर की फ़िज़ा बहुत ही मनोरम है।

महानदी और मांड नदी से घिरा चंद्रपुर, जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत रायगढ़ से लगभग ३२ कि.मी. और सारंगढ़ से २२ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ चंद्रसेनी देवी का वास है और कुछ ही दुरी (लगभग 1.5कि.मी.) पर माता नाथलदाई का मंदिर है जो की रायगढ़ जिले की सीमा अंतर्गत आता है।

●कहते है कि एक बार चंद्रसेनी देवी सरगुजा की भूमि को छोड़कर उदयपुर और रायगढ़ होते
हुए चंद्रपुर में महानदी के तट पर आ गईं। महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर यहाँ पर वे विश्राम करने लगीं। वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुली। एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहाँ से गुज़री और अनजाने में उनका पैर चंद्रसेनी देवी को लग गयाऔर उनकी नींद खुल गई। फिर एक दिन स्वप्न में देवी ने उन्हें यहाँ मंदिर के निर्माण और मूर्ति की स्थापना का निर्देश दिया।

●प्राचीन ग्रंथों में संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिरनिर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है।

●देवी की आकृति चंद्रहास जैसी होने के कारण उन्हें ''चंद्रहासिनी देवी'' भी कहा जाता है। इस मंदिर की व्यवस्था का भार उन्होंने यहाँ के ज़मींदार को सौंप दिया। यहाँ के ज़मींदार ने उन्हें अपनी कुलदेवी स्वीकार कर पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी। आज पहाड़ी के चारों ओर अनेक धार्मिक प्रसंगों, देवी- देवताओं, वीर बजरंग बली और अर्द्धनारीश्वर की आदमकद प्रतिमाएँ, सर्वधर्म सभा और चारों धाम की आकर्षक झाँकियाँ लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

माँ नाथलदाई मंदिर टिमरलगा,रायगढ़

माँ नाथलदाई मंदिर टिमरलगा,रायगढ़

बुढी माँ मंदिर ,रायगढ़

बुढी माँ मंदिर ,रायगढ़

जय माँ बगदाई माता मंदिर, कचलोन ,सिमगा

जय माँ बगदाई माता मंदिर, कचलोन ,सिमगा

माँ चंडीदाई मंदिर जोगीडीपा-सरसीवां(बलोदा-बाजार)

माँ चंडीदाई मंदिर  जोगीडीपा-सरसीवां(बलोदा-बाजार)

जय हिंगलाज माता मंदिर,भटगांव(बलोदा-बाजार)

जय हिंगलाज माता मंदिर,भटगांव(बलोदा-बाजार)

माँ महामाया मंदिर साजा जिला बेमेतरा

माँ महामाया मंदिर साजा जिला बेमेतरा

ये है ‪देश‬ का ‪नंबर_वन_एयरपोर्ट - स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट‬,रायपुर

ये है ‪#‎देश‬ का ‪#‎नंबर_वन_एयरपोर्ट‬, ये बातें इसे बनाती हैं सबसे खास

‪#‎स्वामी_विवेकानंद_एयरपोर्ट‬ का एरियल व्यू।

रायपुर. पैसेंजर्स को बेहतर सुविधाएं देने और उन्हें सैटिस्फाइड करने के लिए एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) ने रायपुर के स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट को देश का नंबर वन एयरपोर्ट घोषित किया है। एएआई की ओर से नई दिल्ली में आयोजित 21वें वार्षिक समारोह में केंद्रीय विमानन राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार महेश शर्मा ने रायपुर एयरपोर्ट अथॉरिटी के डायरेक्टर संतोष धोके को अवार्ड दिया। 52 एयरपोर्ट्स को पछाड़ा...

- एयरपोर्ट की सुविधाओं और उससे मिलने वाले सेटिस्फेक्शन के असेस्मेंट के लिए हर साल सर्वे किया जाता है।
- कस्टमर सेटिस्फेक्शन सर्वे 2015 में देश भर के 53 एयरपोर्ट्स शामिल हुए। कुल 33 मानकों पर सर्वे कराया गया।
- सर्वे में कुल पांच प्वाइंट्स में से सबसे ज्यादा 4.86 प्वाइंट्स स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट, रायपुर को मिले।
जानिए इस एयरपोर्ट को...
- राजधानी के माना में स्थित स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट नया रायपुर और पुराना रायपुर के लगभग बीचोबीच पड़ता है।
- 2006 में इस एयरपोर्ट में पैसेंजर्स में 82 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई थी जो देश में उस साल सबसे ज्यादा थी।
- यह देश के उन 35 नॉन-मेट्रो एयरपोर्ट्स में शामिल है जिसे एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने मॉडर्नाइज किया है।
- इस एयरपोर्ट में एयर इंडिया, जेट एयरवेज, इंडिगो आदि की फ्लाइट्स आती-जाती हैं।
लंबा चौड़ा टर्मिनल
- 136 करोड़ की लागत से बना, 18,500 स्क्वायर मीटर एरिया में फैला इंटीग्रेटेड टर्मिनल।
- इसमें दो एयरोब्रिज, 20 चेक-इन काउंटर्स और दो एक्सरे लगेज मशीन्स हैं।
- इसके अलावा तीन चेक-इन प्वाइंट्स और लगेज के लिए तीन कन्वेयर बेल्ट्स भी लगे हैं।
- बिल्डिंग की डिजाइन ऐसी कि एक समय में वहां से 700 पैसेंजर्स, जिनमें 200 विदेश आने-जाने वाले हों, को संभाला जा सकता है।
- टर्मिनल में संभावित इंटरनेशनल फ्लाइट्स को ध्यान में रखते हुए 15 इमिग्रेशन काउंटर्स बनाए गए हैं।
ड्राई एयरपोर्ट
- अपने किशोरावास्था के दो साल रायपुर में बिताने वाले स्वामी विवेकानंद के नाम पर इसका नामकरण हुआ है।
- यह एक 'ड्राई' एयरपोर्ट है। संत के नाम वाली जगह में पब्लिक प्रेशर में बीयर बार नहीं खोला जा सका।
बढ़ रहे पैसेंजर्स
- पिछले साल जारी आंकड़ों के मुताबिक स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट देश के उन टॉप थ्री एयरपोर्ट में शामिल है जहां घरेलू पैसेंजर्स की संख्या 10 लाख या उससे ज्यादा है।
- रायपुर एयरपोर्ट अथॉरिटी का दावा है कि 2016 में नई उड़ानें शुरू होने के बाद रायपुर देश का पहला एयरपोर्ट होगा जहां हर महीने यात्रियों की संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा होगी।
हमर छत्तीसगढ़

Sunday, April 10, 2016

51 शक्ति पीठ में से एक है रतनपुर का मां महामाया मंदिर

कहते हैं जो भी इस मंदिर की चौखट पर आया वो खाली नहीं गया। जितनी अनोखी इस मंदिर की मान्यता है। उतनी अनोखी इस मंदिर की कहानी है। यहां बैठी मां महामाया देवी के आशीर्वाद से हर संकट दूर हो जाता है। कुंवारी लड़कियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। लोगों के सभी कष्ट दूर हो जाते है। देवी मां के इस मंदिर को 51 शक्ति पीठ में एक माना जाता है।

छत्तीसगढ़ में बिलासपुर से 25 किलोमीटर पर स्थित आदिशक्ति मां महामाया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का इतिहास प्राचीन एवं गौरवशाली है। त्रिपुरी के कलचुरियों की एक शाखा ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में शासन किया। राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नामक गांव को रतनपुर नाम देकर अपनी राजधानी बनाया। श्री आदिशक्ति मां महामाया देवी मंदिर का निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा 11वी शताब्दी में कराया गया था।
मंदिर के निर्माण की है कुई किवदंतिया
1045 ई में राजादेव रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गांव में रात्रि विश्राम एक वट वृक्ष पर किया। अर्धरात्रि में जब राजा की आंख खुली तब उन्होंने वट वृक्ष के नीचे आलौकिक प्रकाश देखा यह देखकर चमत्कृत हो गए कि वहां आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है। इतना देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे। सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गए और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। 1050 ई में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया।

माता सती का गिरा था स्कंध

माना जाता है कि सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए। इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ रूप में मान्यता मिली। महामाया मंदिर में माता का दाहिना स्कंध गिरा था। भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। इसीलिए इस स्थल को माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया। यहां प्रात:काल से देर रात तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है। माना जाता है कि नवरात्र में यहां की गई पूजा निष्फल नहीं जाती है।

नागर शैली में बना है मंदिर का मंडप

नागर शैली में बने मंदिर का मण्डप 16 स्तम्भों पर टिका हुआ है। भव्य गर्भगृह में मां महामाया की साढ़े तीन फीट ऊंची दुर्लभ प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है। मान्यताओं के अनुसार मां की प्रतिमा के पृष्ठ भाग में मां सरस्वती की प्रतिमा है जो विलुप्त मानी जाती है।

Saturday, April 9, 2016

500 साल पुराने इस मंदिर के दर्शन मात्र से पूरी हो जाती है मनोकामना

चैत्र नवरात्रि की शुरूआत शुक्रवार को हुई है। इसि के साथ आस्था का एक नया अध्याय भी शुरू हुआ है। उर्जाधानी में आस्था का केन्द्रबिन्दु सर्वमंगला मंदिर को माना जाता है। मंदिर के बारे में एक ऐसी खास बात है। जिससे ढ़ेरो लोग अब भी अनभिज्ञ हैं।

सर्वमंगला मंदिर का इतिहास वैसे तो 118 साल पुराना है। जिसकी स्थापना सन् 1898 के आस पास मानी जाती है। लेकिन इससे भी सालों पुरानी यहां एक और चीज है।
वो है सूर्य देव के मनमोहक प्रतिमा के समीप स्थित वट वृक्ष, मंदिर के पुजारी अनिल पाण्डेय की मानें तो यह वट वृक्ष लगभग 500 वर्ष पुराना है। जैसा कि उनके पूर्वजों ने उन्हें बताया है।
इस वृक्ष की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे मानोकामना पूरा करने वाला वृक्ष माना जाता है। पूर्व में इस वृक्ष के नीचे हाथी भी आकर विश्राम किया करते थे। इसके बाद पिछले कुछ वर्षों तक विशाल वट वृक्ष के झूले जैसे तनों पर मयूर भी आकर विश्राम व क्रीडा करते थे।
ऐसी मान्यता है कि इस वृक्ष की टहनियों में रक्षा सूत्र बांधकर मन्नत मांगने पर मनोकामना पूरी हो जाती है। यह मान्यता पिछले कई वर्षों से चली आ रही है। इस 500 साल पुराने वट वृक्ष की टहनियों से लेकर तने तक रक्षा सूत्र से बंधे हुए हैं। खासतौर से महिलाएं यहां बड़ी तादात में रक्षा सूत्र बांधकर मन्नता मांगती है। इस वर्ष मंदिर में 900 मनोकामना दीप कलश भी जागमगाएंगे।

Friday, April 8, 2016

136 साल से सागौन के 24 स्तंभों पर खड़ा है मां दंतेश्वरी का मंदिर

जगदलपुर शहर के आस्था का प्रमुख केन्द्र दंतेश्वरी मंदिर में मां के दर्शन के लिए आप कई बार गए होंगे, लेकिन क्या आपने दंतेश्वरी मंदिर में खड़े 24 स्तंभों को गौर से देखा है।
सीमेंट या चूना पत्थर की तरह दिखने वाले ये स्तंभ दरअसल लकड़ी के हैं, जिस परओडिशा के कलाकारों ने आकर्षक नक्काशी की है। मंदिर में दंतेश्वरी माता की मूर्ति संगमरमर से निर्मित सिंहवाहिनी है। यहां लकड़ी से निर्मित भगवान विष्णु की प्रतिभा भी विराजमान है।


वारंगल के राजाओं ने 1880 में करवाया था निर्माण

शहर के दंतेश्वरी मंदिर को वारंगल के राजा हीराला चितेर ने 1880 में बनवाया था। उस समय इस इलाके में उनका राजपाठ था। वारंगल के राजाओं की कुलदेवी मां दंतेश्वरी थी और वे विष्णु भक्त भी थे। इससे पहले बस्तर में नागवंशी राजाओं का शासन रहा। पंडित राम चंद्र रथ ने बताया कि पहले बस्तर की ईस्ट देवी मावली माता थी। इसी वजह से दशहरे के समय मावली परघाव किया जाता है।

1958 में स्थापित हुई मां सरस्वती की प्रतिमा

दंतेश्वरी मंदिर में मां सरस्वती की प्रतिभा भी स्थापित है। इसकी स्थापना 1958 में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव ने करवाई थी। गौरतलब है कि महाराज भंजदेव की कुलदेवी काली माता थी।

प्रवेश द्वार में विष्णु के दस अवतार

दंतेश्वरी मंदिर के मुख्य द्वार स्थित दरवाजे में विष्णु भगवान के 10 अवतारों का वर्णन किया गया है और उसके ऊपर गरूड़ का चित्र बना हुआ है।


पंडित कृष्ण कुमार पाढ़ी ने बताया कि यह मंदिर पहले लकडि़यों से बना था, बाद में इसका पुनरुद्धार कर टाइल्स आदि लगाए गए। मंदिर में माता की जो अन्य मूर्ति स्थापित की गई है वह अष्ट धातु की है। शारदीय नवरात्रि में माता का मुख दक्षिण दिशा की ओर व चैत्र नवरात्रि में पूर्व में रखकर पूजा की जाती है।

Wednesday, April 6, 2016

सर्वमंगला मंदिर,कोरबा

सर्वमंगला मंदिर कोरबा शहर से लगा हुआ दुर्गा देवी को समर्पित सर्वमंगला मन्दिर कोरबा के प्रमुख मन्दिरों में से एक है. इसका निर्माण कोरबा के जमींदर राजेश्वर दयाल के पूर्वजों ने कराया था. सर्वमंगला मन्दिर के पास त्रिलोकीनाथ मन्दिर, काली मन्दिर और ज्योति कलश भवन हैं.


पर्यटक इन मन्दिरों के दर्शन भी कर सकते हैं. इन मन्दिरों के पास एक गुफा भी जो नदी के नीचे से होकर गुजरती है. कहा जाता है कि रानी धनराज कुंवर देवी इस गुफा का प्रयोग मन्दिरों तक जाने के लिए किया करती थी.

मां चंद्रहासिनी मंदिर,चंद्रपुर,रायगढ़

सती के अंग जहां-जहां धरती पर गिरे थे,वहां मां दुर्गा के शक्तिपीठ माने जाते हैं।महानदी व माण्ड नदी के बीच
बसे चंद्रपुर में मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में विराजित है।
चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम जगत में फैल रही है, लेकिन इसका स्वरूप चंद्रमा से भी सुंदर है। माता चंद्रसेनी के दर्शनमात्र से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और मां अपने भक्तों की मनोकामनाएं दो अगरबत्ती व फूल से ही पूर्ण कर देती है।
चंद्रपुर जिला मुख्यालय जांजगीर से 120 किलोमीटर तथा रायगढ़ से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
यहां माता चंद्रसेनी का वास है। चारों ओर प्राकृतिक सुंदरता से घिरे चंद्रपुर की फिजां बहुत ही मनोरम है। एक ओर जहां महानदी अपने स्वच्छ जल से माता चंद्रसेनी के पांव पखारती है, वहीं दूसरी ओर माण्ड
नदी क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी से कम नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व चंद्रपुर मंदिर पुराने स्वरूप में था, लेकिन जब से ट्रस्ट का गठन हुआ, इसके बाद से मंदिर व परिसर का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। मंदिर
का मुख्यद्वार इतना आकर्षक और भव्य है कि यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु उसकी तारीफ किए बगैर
नहीं रूकते। इसके बाद मंदिर परिसर में अर्द्धनारीश्वर, महाबलशाली पवन पुत्र, कृष्ण लीला, चीरहरण, महिषासुर वध, चारों धाम, नवग्रह की मूर्तियां, सर्वधर्म सभा, शेष शै्यया तथा अन्य देवी-देवताओं की भव्य
मूर्तियां जीवन्त लगती हैं।

इसके अलावा मंदिर परिसर में ही स्थित चलित झांकी महाभारत काल का सजीव चित्रण है, जिसे देखकर महाभारत के चरित्र और कथा की विस्तार से जानकारी भी मिलती है। दूसरी ओर भूमि के अंदर बनी सुरंग
रहस्यमयी लगती है और इसका भ्रमण करने पर रोमांच महसूस होता है।
वहीं माता चंद्रसेनी की चंद्रमा आकार प्रतिमा के एक दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण
होती हैं। चंद्रहासिनी माता का मुख मंडल चांदी से चमकता है, ऐसा नजारा देश भर के अन्य मंदिरों में दुर्लभ है। चंद्रहासिनी मंदिर के कुछ दूर आगे महानदी के बीच मां नाथलदाई का मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि मां चंद्रहासिनी के दर्शन के बाद माता नाथलदाई के दर्शन भी जरूरी है। अन्यथा माता नाराज हो जाती है। यह भी कहा जाता है कि महानदी में बरसात के दौरान लबालब पानी भरे होने के बाद भी मां नाथलदाई का मंदिर नहीं डूबता। एक किंवदंति के अनुसार हजारों वर्षो पूर्व सरगुजा की भूमि को छोड़कर माता चंद्रसेनी देवी उदयपुर और रायगढ़ होते हुए चंद्रपुर में महानदी के तट पर आती हैं। महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर यहां पर वह विश्राम करने लगती हैं। वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुलती। एक बार संबलपुर के
राजा की सवारी यहां से गुजरती है, तभी अनजाने में चंद्रसेनी देवी को उनका पैर लग जाता है और माता की नींद खुल जाती है। फिर स्वप्न में देवी उन्हें यहां मंदिर निर्माण और मूर्ति स्थापना का निर्देश देती हैं। संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिर निर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है। देवी की आकृति चंद्रहास जैसे होने के कारण उन्हें ‘‘चंद्रहासिनी देवी’’ भी कहा जाता है। राजपरिवार ने मंदिर की व्यवस्था का भार यहां के जमींदार
को सौंप दिया। यहां के जमींदार ने उन्हें अपनी कुलदेवी स्वीकार करके पूजा अर्चना की। इसके बाद से माता चंद्रहासिनी की आराधना जारी है। यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वहीं वर्ष के दोनों नवरात्रि पर्वो पर मेले जैसा माहौल रहता है। छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों के श्रद्धालु यहां नवरात्रि में ज्योति कलश प्रज्जवलित कराकर मां से अपने सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। कई श्रद्धालु मनोकामना पूरी करने के लिए यहां बकरे व मुर्गी की बलि देते हैं।

कैसे पहुंचे चंद्रपुर

चंद्रपुर पहुंचने के लिए श्रद्धालु रेलमार्ग से रायगढ़
या खरसिया स्टेशन में उतरकर बस व अन्य वाहनों से माता के दरबार
पहुंच सकते हैं। इसके अलावा जांजगीर, चांपा,
सक्ती, सारंगढ़, डभरा से चंद्रपुर जाने के लिए दिन भर
बस व जीप आदि की सुविधा हैै।
यात्री यदि चाहे तो चांपा या रायगढ़ से प्राइवेट वाहन किराए
पर लेकर भी चंद्रपुर पहुंच सकते हैं।

Tuesday, April 5, 2016

शाटन देवी मंदिर,रतनपुर छत्तीसगढ़ - यहाँ बच्चो के अच्छे स्वास्थ्य लिए देवी को चढ़ाते है लौकी


शाटन देवी मंदिर, छत्तीसगढ़ - यहाँ बच्चो के अच्छे स्वास्थ्य लिए देवी को चढ़ाते है लौकी

छत्तीसगढ़ के रतनपुर में स्थित शाटन देवी मंदिर(बच्चों का मंदिर) से एक अनोखी परंपरा जुड़ी है। मंदिरों में आमतौर पर फूल, प्रसाद, नारियल आदि भगवान को चढ़ाने का विधान है, लेकिन शाटन देवी मंदिर में देवी को लौकी और तेंदू की लकड़ियां चढ़ाई जाती हैं। इस मंदिर को बच्चों का मंदिर भी कहते हैं। श्रद्धालु यहां अपने बच्चों की तंदुरुस्ती के लिए प्रार्थना करते हैं और माता को लौकी और तेंदू की लकड़ी अर्पण करते हैं। इस मंदिर में यह परंपरा कैसे शुरू हुई यह कोई नहीं जानता, लेकिन ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां लौकी और तेंदू की लकड़ी चढ़ाता है, उनकी मनोकामना पूरी होती है।