Wednesday, December 30, 2015

अड़भार प्राचीन नगर ,जांजगीर-चांपा (Adbhar,Janjgir-Champa)

अड़भार की मां अष्टभुजी आठ भुजाओं वाली है, ये बात तो अधिकांश लोग जानते हैं लेकिन देवी के दक्षिणमुखी होने की जानकारी कम लोगों को ही है। जांजगीर चांपा जिले में मुंबई हावड़ा रेल मार्ग पर सक्ती स्टेशन से दक्षिण पूर्व की ओर 11 किमी की दूरी पर स्थित अड़भार अष्टभुजी माता के मंदिर के नाम पर प्रसिद्ध है। लगभग 10 साल पहले यह गांव नगर पंचायत का दर्जा पाकर अब विकास की ओर अग्रसर है। यहां नवरात्र पर मां अष्टभुजी के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगता है। इस बार भी नवरात्रि में जिले के अलावा रायगढ़, बिलासपुर और कोरबा जिले के भक्त पहुंच रहे हैं। मंदिर में मां अष्टभुजी की ग्रेनाइट पत्थर की आदमकद मूर्ति है। आठ भुजाओं वाली मां दक्षिणमुखी भी है। इस संबंध में नगर के प्रफुल्ल देशमुख ने बताया कि पूरे भारत में कलकत्ता की दक्षिणमुखी काली माता और अड़भार की दक्षिणमुखी अष्टभुजी देवी के अलावा और कहीं की भी देवी दक्षिणमुखी नहीं है। जगत जननी माता अष्टभुजी का मंदिर दो विशाल इमली पेड़ के नीचे बना हुआ है।

आदमकद वाले काले ग्रेनाइड की दक्षिणमुखी मूर्ति के ठीक दाहिनी ओर डेढ़ फीट की दूरी में देगुन गुरू की प्रतिमा योग मुद्रा में बैठी हुई प्रतीत होती है। मंदिर परिसर में पड़े बेतरतीब पत्थर की बारिक नक्काशी देखकर हर आदमी सोचने पर मजबूर हो जाता है। प्राचीन इतिहास में अड़भार का उल्लेख अष्ट द्वार के नाम से मिलता है। अष्टभुजी माता का मंदिर और इस नगर के चारों ओर बने आठ विशाल दरवाजों की वजह से शायद इसका प्राचीन नाम अष्टद्वार रहा और धीरे धीरे अपभ्रंश होकर इसका नाम अड़भार हो गया। लगभग 5 किमी. की परिधि में बसा यह नगर कुछ मायने में अपने आप में अजीब है। यहां हर 100 से 200 मीटर में किसी न किसी देवी देवता की मूर्तियां सही सलामत न सही लेकिन खंडित स्थिति में जरूर मिल जाएंगी। आज भी यहां के लोगों को घरो की नींव खोदते समय प्राचीन टूटी फूटी मूर्तिया या पुराने समय के सोने चांदी के सिक्के प्राचीन धातु के कुछ न कुछ सामान अवश्य प्राप्त होते हैं।


नगर पंचायत अद्भर में भगवान नटराज, शिव (स्थानीय स्तर पर "मानभंजन सोरा" कहा जाता है) और मां अष्टभुजी मंदिर है, अद्भर की दूरी 10km सकती और खरसिया से है रायगढ़ (45 किमी पश्चिम), चंपा जांजगीर (45 किमी पूरब) और बिलासपुर से (100km पूर्व) दूरी पर स्थित है


मंदिर में आस्था के दीप
हर साल यहां चैत और चंर में नवरात्रि पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ सहित अन्य प्रदेशों से भी दर्शनार्थी यहां पहुंचते हैं। भक्त अनेक प्रकार की मन्नतें मांगते है । मन्नतें पूरी होने पर 'योत 'वारा जलवाते हैं।


छत्तीसगढ़ का महत्वपूर्ण तीर्थस्थल अड़भार अष्टभुजी एक अति प्रचीन धार्मिक स्थान है। यह तीर्थस्थल आठ हाथों वाली एक देवी को समर्पित है। मंदिर का ज्योति कलश नवरात्रि के दौरान जला रहता है, जिससे इसकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है।
अड़भार मंदिर की वास्तुशिल्पीय डिजाइन भी बेहद उत्कृष्ट है। साथ ही यह धार्मिक कृत्य और परंपराओं का मजबूती के साथ निर्वाह कर रहा है। छत्तीसगढ़ के हर हिस्से से अड़भार अष्टभुजीय आसानी से पहुंचा जा सकता है। इस कारण यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।


2 comments:

  1. That's Jain Image of 22nd Tirthankara Lord Parshwanatha.

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  2. Ye murti jise degun guru bataya jaa raha h ye jain murti h parshwanath bhagwan h khandhar ke avshesh bhi jain vastukala ke namune h

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