Monday, June 13, 2016

कभी यहां रहता था राक्षस दंडक, अब जमीन से निकल रहीं 10वीं सदी की मूर्तियां

जंगलों से घिरे पुरातात्विक स्थल महेशपुर  (अंबिकापुर ) को उसके मूल स्वरूप में लौटाने की कवायद चल रही है। संस्कृति विभाग के जरिए यहां प्राचीन धरोहरों को सहेजने का काम चल रहा है। ओडिशा, बंगाल, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों के कलाकार यहां मिली 10वी सदी और पहले की मूर्तियों के साथ-साथ पुराने टीलों को संवारने में जुटे हुए हैं। पौराणिक इतिहास के मुताबिक यह इलाका कभी दंडकारण्य का प्रवेश द्वार रहा होगा। रामायण में दंडकारण्य नाम के घनघोर जंगल का जिक्र है, जो दंडक राक्षस का अड्डा हुआ करता था।

- पहले चरण में दो मंदिरों को सवांरा जा रहा है। एक मंदिर में छह से सात टीले हैं। दो करोड़ रुपए इस प्रोजेक्ट पर खर्च किए जा रहे हैं।

- खुदाई में निकल रहे पत्थरों को ही तराशकर कलाकारों द्वारा टीलों को वास्तविक आकार देने का काम चल रहा है।
- दो से तीन महीने में काम पूरा होने की उम्मीद है। अधिकारियों के अनुसार ऐतिहासिक महत्व के हिसाब से यह इस अंचल का बड़ा पर्यटन केंद्र होगा।
खुदाई भी होनी है

- वर्षों पहले पुरातत्व विभाग द्वारा यहां कुछ टीलों की खुदाई कर मूर्तियों को बाहर निकाला गया है जबकि कई टीलों की खुदाई होनी है।
- अधिकारियों के अनुसार कल्चुरी राजाओं के समय में इन मंदिरों को बनाए जाने के सबूत मिले हैं।
- महेशपुर की विशालता से पता चलता है कि यहां तीर्थयात्री आते थे और यह दंडकारण्य का प्रवेश द्वार रहा होगा।
- विष्णु, वराह, वामन, सूर्य, नरसिंह, उमा, महेश्वर, नायिकाएं एवं कृष्ण लीला से संबंधित मूर्तियां खुदाई में निकली हैं।

मूर्तियों की संग्रहालय में होगी शिफ्टिंग
- यहीं पर एक संग्रहालय बना है, जिसमें खुदाई में निकल रही मूर्तियों को रखा जाएगा।
- इसके पीछे बड़ा उद्देश्य मूर्तियों को बचाना है। तस्करों की निगाहें यहां खुले में पड़ी मूर्तियों पर रही हैं।
- पिछले सालों में यहां से कई मूर्तियों की चोरी हो चुकी है।
- बताया जाता है कि तस्कर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चोर इन मूर्तियों को बड़ी कीमत में बेचते होंगे।
- तीन साल पहले चोरी गई मूर्तियों की तलाश में पुलिस नेपाल तक गई लेकिन उनका का पता नहीं चला।
- यहां दसवीं सदी के टूटे-फूटे शिलालेखों के अलावा प्रिहिस्ट्रोरिक एज (जिस समय का लिखित इतिहास नहीं) में कठोर पत्थरों से बने धारदार और नुकीले हथियार भी मिले हैं।
- महेशपुर की शिल्पकला से पता चलता है कि वह समय इस इलाके के लिए गोल्डन एज रहा होगा। इस पर रिसर्च होना अभी बाकी है।

कला एवं संस्कृति से समृद्ध रहा है क्षेत्र
- पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के अनुसार पुरातात्विक स्थल महेशपुर आने वाले समय में लोगों के मनोरंजन के साथ ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से पर्यटन का बड़ा केंद्र होगा।
- आठवीं सदी से लेकर 11 वीं सदी के बीच यह क्षेत्र कला और सस्कृति से अद्भुत रूप से समृद्ध माना जाता है। यहां शिव वैष्ण्व एवं जैन धर्म से संबंधित पुरावशेष हैं।

सामने आएगा इतिहास
- महेशपुर अंबिकापुर से 45 किलोमीटर दूर और उदयपुर ब्लॉक हेडक्वार्टर से सात किलोमीटर दूर है।
- बताया जाता है कि इसी रास्ते से भगवान राम का दंडकारण्य में आगमन हुआ और उन्होंने वनवास का महत्वपूर्ण समय यहां पर बिताया।
- इतिहासाकरों के अनुसार जमदाग्नि ऋषि की पत्नी रेणुका ही इस स्थल पर रेण नदी के रूप में बतरी हैं।
- रेण नदी का उद्गम उदयपुर ब्लॉक का ही मतरिंगा पहाड़ है।
क्या है दंडकारण्य
- दंडकारण्य पूर्वी मध्य भारत का एक भौगोलिक क्षेत्र है।
- क़रीब 92,300 स्क्वायर किलोमीटर में फैले इस इलाक़े में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं।

- इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक क़रीब 320 किमी और पूरब से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है।
- पुरातत्व एक्सपर्ट जीएल रायकवार के ने बताया, " ''2008 में इस क्षेत्र में टीले की खुदाई शुरू हुई थी। महेशपुर से लक्ष्मणगढ़ तक चार किलोमीटर में मंदिरों के कई समूह हैं।''
- '' पहले चरण में दो मंदिरों की खुदाई पूरी होने के बाद इन्हें मूल स्वरूप में आकार दिया जा रहा है। खुदाई में निकले पत्थरों से ही टीलों को आकार दिया जा रहा है।''

Source: Dainik Bhaskar


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