Sunday, February 14, 2016

यहां होती है शादी के पहले ही युवक-युवतियों को रात साथ बिताने की छूट

छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के माड़िया जाति में परंपरा घोटुल को मनाया जाता है, घोटुल में आने वाले लड़के-लड़कियों को अपना जीवनसाथी चुनने और उसके साथ रात बिताने की छूट होती है। घोटुल को सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त है। क्या होता है घोटुल में …

-घोटुल एक प्रकार का बैचलर्स डोरमिटरी होता है। जहां सभी आदिवासी लड़के-लड़कियां रात में बसेरा करते हैं।
-गांव के सभी कुंवारे लड़के-लड़कियां शाम होने पर गांव के घोटुल घर में रहने जाते हैं ।

-घोटुल देश के कई जनजातीय समुदायों में पॉपुलर है। इसमें पूरे गांव के बच्चे या जवान एक साथ रहते हैं।
-यह छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले और साउथ के कुछ इलाकों में खासतौर पर मनाया जाता है।

-अलग-अलग इलाकों की घोटुल परम्पराओं में अंतर होता है। कुछ में जवान लड़के-लड़कियां घोटुल में ही सोते हैं तो कुछ में वे दिन भर वहां रहकर रात को अपने-अपने घरों में सोने जाते हैं।
-घोटुल में उस जाति से रिलेटेड आस्थाएं, नाच-संगीत, कला और कहानियां भी बताई जाती हैं।
-कुछ में नौजवान लड़के-लड़कियां आपस में मिलकर जीवन-साथी चुनते हैं, और उन्हें शादी के पहले ही साथ रात बिताने की छूट होती है। हालांकि यह परंपरा अब धीरे-धीरे कम हो रही है।

क्या है चेलिक और मोटियारी
घोटुल गांव के किनारे बनी एक मिट्टी की झोपड़ी होती है। कई बार घोटुल में दीवारों की जगह खुला मण्डप होता है। शाम को लड़के-लड़कियां यहां धीरे-धीरे एकट्ठे होने लगते हैं और वे ग्रुप में गाते हुए ही घोटुल तक पहुंचते हैं।

लड़कों का ग्रुप अलग बनता है एवं लड़कियों का अलग।
घोटुल में कुछ अधेड़ लोग भी आते हैं लेकिन वे दूर बैठकर ही नाच-गाना देखते हैं। घोटुल के लड़कों को चेलिक और लड़कियों को मोटियारी कहा जाता है।

पहले से कम हुआ घोटुल का चलन
बस्तर में बाहरी दुनिया के कदम पड़ने से घोटुल का असली चेहरा बिगड़ा है। यह खास सोशल एक्टीविटी आखिरी सांसे गिन रही है। बस्तर के अंदरूनी इलाकों में घोटुल आज भी अपने बदले हुए रूप में देखा जा सकता है।

घोटुल में लड़के-लड़कियां के एक दूसरे के साथ समय बिताने से उन्हें एक दूसरे को समझने का मौका मिलता है। वे यहीं शादी के रिश्ते की भी शुरुआत करते हैं। बाहरी लोगों के यहां आने और फोटो खींचने, वीडियो फिल्म बनाना ही इस परम्परा के बन्द होने का कारण बना है।

बना नक्सलियों की आंखों की किरकिरी
अबूझमाड़ की इस आदिवासी संस्कृति पर देश-विदेश से लोग रिसर्च करने आते हैं। पर यह परंपरा माओवादियों को नापसंद है। इसके लिए उन्होंने बकायदा कई जगह फरमान जारी कर इसपर बंदिश लगाने की कोशिश की है। उनकी नजर में यह एक तरह का स्वयंवर है।
उनके मुताबिक आदिवासियों का जवान लड़के-लड़कियों को इतनी आजादी देना ठीक नहीं है। उनका मानना है कि कई जगह पर इस परम्परा का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है और लड़कियों का शारीरिक शोषण भी किया जा रहा है। कई इलाकों में यह परम्परा पूरी तरह बंद तो नहीं हुई है, लेकिन कम जरूर हो रही है।

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