Tuesday, April 19, 2016

धरोहरों के लिए मशहूर है गांडागौरी पहाड़ी, देवकुंड में सालभर रहता है पानी

बस्तर संभाग का प्रवेश द्वार चारामा विकासखंड पुरातात्विक धरोहरों के लिए विख्यात है। फिर वह उड़कुड़ा की पहाड़ी पर आदिमानवों के प्रागैतिहासिक कालीन शैलचित्र हो या फिर गोटीटोला स्थित पहाड़ी और खैरेखेड़ा की पहाड़ी के शैलचित्र। ग्राम गांडागौरी में पहाड़ी पर पत्थरों के बीच 12 फीट गहरा कुआं भी आकर्षण का केंद्र है। देवकुंड कहलाने वाला यह कुआं ऊंचाई और गर्मियों में भी न सूखने के कारण लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है।


                 लखनपुरी. गांडागौरी पहाड़ी पर 12 फीट गहरा कुआं। इसका पानी गर्मी में भी नहीं सूखता।

बस्तर वनांचल विविधताओं का अंचल है। यहां विशाल वन क्षेत्र है, जिसमें प्रचुर मात्रा में लौह अयस्क व अन्य खनिज हैं। बस्तर में पुरातत्व के महत्वपूर्ण स्थल भी हैं। चारामा विकासखंड अपने इन्हीं पुरातात्विक स्थलों के लिए जाना जाता है। अंचल में कई स्थानों पर प्राचीन मानवों के बनाए मेगालीथ परंपरा के अवशेष मिलते हैं।
इसी क्रम में ग्राम गांडागौरी में भी प्राचीन शैलचित्र, प्राकृतिक जलकुंड, पत्थरों पर बनाए गए प्राचीन छिद्र हैं। यहां सीधी ऊंचाई वाली पहाड़ी पर पत्थरों के बीच 12 फीट गहरा कुआं है। इसमें भरी गर्मी में भी पानी रहता है। आसपास के ग्रामीण इसे देवकुंड कहते हैं। पहाड़ पर और भी स्थलों के कारण इसका काफी महत्व है।

पहाड़ के नीचे देवी मंदिर है। इसमें हर नवरात्र लोग पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं। गांव के पुजारी सुनाराम सेवता ने बताया कि पहाड़ के नीचे राधा-कृष्ण प्रतिमा थी, जिसमें से राधा की मूर्ति चोरी हो गई है। पहाड़ी के सामने ही मां के चरण पादुका मौजूद हैं। वहीं ऊपर कुआं जिसे बावली कहते हैं, यहां महिलाएं नहीं जाती हैं।

गांव के नाम को लेकर है कई धारणाएं
मान्यता है कि गांडा गौरी का नाम पहले गढ़ गौरी रहा होगा। गढ़ का मतलब पहाड़ और गौरी का अर्थ मां पार्वती से रहा होगा। धीरे-धीरे इसका अपभ्रंश होता गया और आज इसे गांडागौरी के नाम से जाना जाता है।

शेषनाग और चट्‌टा पर बने छेद करते हैं आकर्षित
यहां विशाल पीपल के पास शेषनाग की आकृति वाली चट्टान है, जिसकी पूजा की जाती है। पहाड़ी के नीचे चट्टान पर गोलाकार मानव निर्मित एक ही व्यास व गहराई वाले कई छेद हैं। इसके उत्तर में सीधी कतार में इसी तरह के और भी छेद हैं। माना जाता है कि आदि मानव दिशा, सूर्योदय, सूर्यास्त, मौसम, जलवायु, काल, समय की गणना के लिए इनका उपयोग करते थे। हालांकि स्थानीय मान्यता है कि मूसल से धान कूटने के लिए बनाया गया होगा।


पहाड़ी के साथ गांव में भी मिलते हैं शैलचित्र
गांडागौरी की पहाड़ी के प्रस्तर खंड में शैलचित्र भी मौजूद हैं, जिसे लोग खून के दाग मानते हैं। इसी तरह के शैलचित्र आस-पास के गांव उड़कूड़ा, खैरखेड़ा व गोटीटोला में भी हैं। इन गावों की सीमाएं भी एक-दूसरे से मिलती हैं।

संभावना है कि प्रागैतिहासिक काल में यहां आदिमानव रहते थे। गांव में जहां मवेशियों का गोठान है, वहां प्रस्तर खंडों को एक निश्चित आकार में रखा गया है। इसे मेगालीथ परंपरा का होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

मां सती के रूप की पूजा की जाती है

मान्यता है कि मां सती का शरीर खंडित होकर जहां-जहां गिरा, वहां शक्तिपीठ बने। भारत में 52 शक्तिपीठ का उल्लेख धर्म ग्रन्थों में किया गया है। मां सती का जो अंग जहां गिरा, वहां उस रूप में पूजा की जाती है।
यहां प्राचीन अवशेषों के साथ पहाड़ी के ऊपर पत्थर में योनि की अाकृति बनी हुई है। इसे धार्मिक आस्था के रूप में लोग मां सती की योनि मानकर पूजा-अर्चना करते हैं। असम गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर योनि पीठ जैसी आकृति ही यहां के पत्थर में है।

साल में एक बार खिलता है पांचफूल

गांडागौरी पहाड़ी के नीचे प्राकृतिक फूल मिलता है, जो फागुन में साल में एक बार खिलता है। लोग इसे पांचफूल के नाम से जानते हैं। इसमें पूरे पेड़ में फूल आते हैं।



गांडागौरी में पत्थर में बने छेद।

शेषनाग की आकृति का विशाल पत्थर।

पहाड़ी के साथ गांव में भी मिलते हैं शैलचित्र।

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