जगदलपुर शहर के आस्था का प्रमुख केन्द्र दंतेश्वरी मंदिर में मां के दर्शन के लिए आप कई बार गए होंगे, लेकिन क्या आपने दंतेश्वरी मंदिर में खड़े 24 स्तंभों को गौर से देखा है।
सीमेंट या चूना पत्थर की तरह दिखने वाले ये स्तंभ दरअसल लकड़ी के हैं, जिस परओडिशा के कलाकारों ने आकर्षक नक्काशी की है। मंदिर में दंतेश्वरी माता की मूर्ति संगमरमर से निर्मित सिंहवाहिनी है। यहां लकड़ी से निर्मित भगवान विष्णु की प्रतिभा भी विराजमान है।
वारंगल के राजाओं ने 1880 में करवाया था निर्माण
शहर के दंतेश्वरी मंदिर को वारंगल के राजा हीराला चितेर ने 1880 में बनवाया था। उस समय इस इलाके में उनका राजपाठ था। वारंगल के राजाओं की कुलदेवी मां दंतेश्वरी थी और वे विष्णु भक्त भी थे। इससे पहले बस्तर में नागवंशी राजाओं का शासन रहा। पंडित राम चंद्र रथ ने बताया कि पहले बस्तर की ईस्ट देवी मावली माता थी। इसी वजह से दशहरे के समय मावली परघाव किया जाता है।
1958 में स्थापित हुई मां सरस्वती की प्रतिमा
दंतेश्वरी मंदिर में मां सरस्वती की प्रतिभा भी स्थापित है। इसकी स्थापना 1958 में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव ने करवाई थी। गौरतलब है कि महाराज भंजदेव की कुलदेवी काली माता थी।
प्रवेश द्वार में विष्णु के दस अवतार
दंतेश्वरी मंदिर के मुख्य द्वार स्थित दरवाजे में विष्णु भगवान के 10 अवतारों का वर्णन किया गया है और उसके ऊपर गरूड़ का चित्र बना हुआ है।
पंडित कृष्ण कुमार पाढ़ी ने बताया कि यह मंदिर पहले लकडि़यों से बना था, बाद में इसका पुनरुद्धार कर टाइल्स आदि लगाए गए। मंदिर में माता की जो अन्य मूर्ति स्थापित की गई है वह अष्ट धातु की है। शारदीय नवरात्रि में माता का मुख दक्षिण दिशा की ओर व चैत्र नवरात्रि में पूर्व में रखकर पूजा की जाती है।
सीमेंट या चूना पत्थर की तरह दिखने वाले ये स्तंभ दरअसल लकड़ी के हैं, जिस परओडिशा के कलाकारों ने आकर्षक नक्काशी की है। मंदिर में दंतेश्वरी माता की मूर्ति संगमरमर से निर्मित सिंहवाहिनी है। यहां लकड़ी से निर्मित भगवान विष्णु की प्रतिभा भी विराजमान है।
वारंगल के राजाओं ने 1880 में करवाया था निर्माण
शहर के दंतेश्वरी मंदिर को वारंगल के राजा हीराला चितेर ने 1880 में बनवाया था। उस समय इस इलाके में उनका राजपाठ था। वारंगल के राजाओं की कुलदेवी मां दंतेश्वरी थी और वे विष्णु भक्त भी थे। इससे पहले बस्तर में नागवंशी राजाओं का शासन रहा। पंडित राम चंद्र रथ ने बताया कि पहले बस्तर की ईस्ट देवी मावली माता थी। इसी वजह से दशहरे के समय मावली परघाव किया जाता है।
1958 में स्थापित हुई मां सरस्वती की प्रतिमा
दंतेश्वरी मंदिर में मां सरस्वती की प्रतिभा भी स्थापित है। इसकी स्थापना 1958 में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव ने करवाई थी। गौरतलब है कि महाराज भंजदेव की कुलदेवी काली माता थी।
प्रवेश द्वार में विष्णु के दस अवतार
दंतेश्वरी मंदिर के मुख्य द्वार स्थित दरवाजे में विष्णु भगवान के 10 अवतारों का वर्णन किया गया है और उसके ऊपर गरूड़ का चित्र बना हुआ है।
पंडित कृष्ण कुमार पाढ़ी ने बताया कि यह मंदिर पहले लकडि़यों से बना था, बाद में इसका पुनरुद्धार कर टाइल्स आदि लगाए गए। मंदिर में माता की जो अन्य मूर्ति स्थापित की गई है वह अष्ट धातु की है। शारदीय नवरात्रि में माता का मुख दक्षिण दिशा की ओर व चैत्र नवरात्रि में पूर्व में रखकर पूजा की जाती है।
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