छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर शहर से तकरीबन 12 किलोमीटर की दूरी पर दरिमा हवाई पट्टी के पास कई बड़े पत्थरों के बीच एक ऐसा पत्थर मौजूद है, जिससे मैटल की तरह आवाज आती है।
- कई अलग-अलग तरह के मैटल की आवाज आने के कारण लोग दूर-दूर से इस पत्थर को देखने आते हैं।
- इस पत्थर पर बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज में कोई अंतर नहीं पड़ता।
- इसी खासियत के कारण इस पत्थर को इलाके के लोग ठिनठिनी पखना कहते हैं।
ग्लेशियर युग का हो सकता है पत्थर
-इस विलक्षण पत्थर को हजारों वर्ष पहले अंतरिक्ष से आया उल्कापिंड, मेटेलिक स्टोन माना जाता है. इसे किसी भी पत्थर या धातु से प्रहार करने पर धात्विक आवाज उत्पन्न होती है.
- जियोलॉजिस्ट एक्सपर्ट विमान मुखर्जी ने बताया कि शायद यह पत्थर ग्लेशियर युग का है।
- उन्होंने बताया कि घुनघुट्टा नदी पर कई बड़े-बड़े पत्थर बिना किसी नुकसान के सालों से हैं। यह पत्थर भी उसी वक्त का हो सकता है।
- श्री मुखर्जी ने बताया कि फोनोलाइट के नेचर के कारण इस तरह के पत्थरों को ठोकने पर मेटल जैसी आवाज आती है।
- ये पत्थर अल्ट्राबेसिक रॉक के रूप में जाने जाते हैं। एक्ट्रेटिव बनाकर इस पत्थर को सहेजने से इलाके में टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। इसके लिए जरुरी परमिशन मिल चुकी है।
- नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ डिजाइन अहमदाबाद के एक्सपर्ट ने उसे खूबसूरत बनाने प्लान तैयार किया गया है, जिसमें खैरागढ़ यूनिवर्सिटी के आर्टिस्ट्स की मदद ली जाएगी।
- कई अलग-अलग तरह के मैटल की आवाज आने के कारण लोग दूर-दूर से इस पत्थर को देखने आते हैं।
- इस पत्थर पर बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज में कोई अंतर नहीं पड़ता।
- इसी खासियत के कारण इस पत्थर को इलाके के लोग ठिनठिनी पखना कहते हैं।
ग्लेशियर युग का हो सकता है पत्थर
-इस विलक्षण पत्थर को हजारों वर्ष पहले अंतरिक्ष से आया उल्कापिंड, मेटेलिक स्टोन माना जाता है. इसे किसी भी पत्थर या धातु से प्रहार करने पर धात्विक आवाज उत्पन्न होती है.
- जियोलॉजिस्ट एक्सपर्ट विमान मुखर्जी ने बताया कि शायद यह पत्थर ग्लेशियर युग का है।
- उन्होंने बताया कि घुनघुट्टा नदी पर कई बड़े-बड़े पत्थर बिना किसी नुकसान के सालों से हैं। यह पत्थर भी उसी वक्त का हो सकता है।
- श्री मुखर्जी ने बताया कि फोनोलाइट के नेचर के कारण इस तरह के पत्थरों को ठोकने पर मेटल जैसी आवाज आती है।
- ये पत्थर अल्ट्राबेसिक रॉक के रूप में जाने जाते हैं। एक्ट्रेटिव बनाकर इस पत्थर को सहेजने से इलाके में टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। इसके लिए जरुरी परमिशन मिल चुकी है।
- नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ डिजाइन अहमदाबाद के एक्सपर्ट ने उसे खूबसूरत बनाने प्लान तैयार किया गया है, जिसमें खैरागढ़ यूनिवर्सिटी के आर्टिस्ट्स की मदद ली जाएगी।
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