Thursday, May 12, 2016

यहां हुआ था परशुराम का जन्म, ऐसे बिखरी पड़ी हैं निशानियां

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में घने जंगलों के बीच स्थित कलचा गांव में स्थित एक ऑर्कियोलॉजिकल साइट है जिसे शतमहला कहा जाता है। मान्यता है कि जमदग्नि ऋषि की पत्नी रेणुका इसी महल में रहती थीं और भगवान परशुराम को जन्म दिया था। कलचा गांव देवगढ़ धाम से महज दो किलोमीटर दूर है और उस पूरे क्षेत्र में ऋषि-मुनियों के इतिहास से जुड़े कई अवशेष बिखरे पड़े हैं।


- हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों से घिरा छत्तीसगढ़ का सरगुजा क्षेत्र प्राचीन काल के दंडकारण्य का वह हिस्सा है जो नामी-गिरामी ऋषि-मुनियों की तपोस्थली हुआ करता था।

- इसे उस समय सुरगुंजा के नाम से जाना जाता था, वही बदलते-बदलते सरगुजा हो गया।
- सरगुजा डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर अंबिकापुर से लगभग 35 किलो मीटर दूर पर उदयपुर ब्लाॅक का एक पंचायत है देवटिकरा।
- देवटिकरा पंचायत स्थित देवगढ़ धाम को परशुराम के पिता जमदग्नि की तपोभूमि माना जाता है।
- इसके अलावा वहां मौजूद 12 ज्योतिर्लिंगों का पुराना मंदिर भी उस जगह की ऐतिहासिकता की पुष्टि करता है।
- देवगढ़ के बारे में यह भी मान्यता है कि अब से करीब दो हजार साल पहले कालिदास ने वहीं पर मेघदूतम नाटक लिखा था।
- कलचा गांव देवगढ़ धाम से पश्चिम की ओर महज दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- देवगढ़ धाम के पुजारी अमृत कुमार वैष्णव का कहना है कि पूरे क्षेत्र में परशुराम और उनके माता-पिता से जुड़ी कहानियां और निशानियां मौजूद हैं।
- कोरिया जिले में पोस्टेड पुरातत्त्व विभाग के अधिकारी वाल्मीकि दुबे का भी कहना है कि यहां स्थानों के नाम और मिलने वाले अवशेषों से परशुराम के कनेक्शन की पुष्टि होती है।

कामधेनु के लिए जमदग्नि की हत्या
-विष्णुपुराण के अनुसार जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी, जिसे राजा सहस्त्रार्जुन हासिल करना चाहता था।
- उसने आश्रम पर हमला कर गाय को कब्जे में ले लिया और जमदग्नि की हत्या कर दी।
- इससे नाराज होकर जमदग्नि के बेटे परशुराम ने न सिर्फ सहस्त्रार्जुन को मारा बल्कि दर्जनों पर पृथ्वी को कई बार क्षत्रियविहीन कर दिया।




यहां टांगीनाथ देवता कहलाते हैं परशुराम
-देवगढ़ से साउथ-ईस्ट दिशा में लगभग 22 किलोमीटर दूर महेशपुर नाम की जगह है, जिसे ‘परहपारा’ भी कहा जाता है।
- कहते हैं की परहापारा में परशुराम का आश्रम था और यह नाम भी उन्हीं के नाम का अपभ्रंश है।
- परशुराम ने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए ऋषि होने के बावजूद परशु (फरसा) धारण किया था।
- फरसा का आकार टांगी (लकड़ी काटने वाली कुल्हाड़ी) से मिलता है, इसीलिए परशुराम को स्थानीय लोग टांगीनाथ देवता कहते हैं।

ऐसे लिया था बदला
- किवदंतियों और धार्मिक इतिहास के मुताबिक परशुराम ने अपने पिता की मौत के बदले में सिर्फ सहस्त्रार्जुन को ही खत्म नहीं किया बल्कि पूरे हैहय वंश का नाश कर दिया।
- इसके बाद उनकी धाक पूरे भारत में हो गई। उस समय का भारत आज से काफी बड़ा था जिसमें अफगानिस्तान से लेकर इंडोनेशिया तक का इलाका शामिल था।
- कालिदास के मेघदूत में कुबेर द्वारा बसाई हुई अलकापुरी का जिक्र है, विद्वानों के मुताबिक वह जगह परहापारा ही है।

लगता है विशाल मेला
-देवगढ़ में हर साल साल सावन में एक महीने का विशाल मेला लगता है।
- इसके अलावा महाशिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा और मकर संक्रांति पर में मेले लगते हैं।
- जगह के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को देखते हुए संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग तेजी से कंजर्वेशन के काम में जुटा हुआ है।

परशुराम की मां के नाम पर नदी
- सरगुजा जिले में बिलासपुर-अंबिकापुर रोड पर स्थित उदयपुर से सूरजपुर की ओर जाने वाले रोड पर 22 किलोमीटर की दूरी पर रेण नदी के किनारे बसा है देवगढ़।
- वहां से सूरजपुर की दूरी महज 16 किलोमीटर है।
- किवदंती है कि मतरिंगा पहाड़ से निकलने वाली रेण नदी का नाम परशुराम की माता रेणुका के नाम पर ही पड़ा है।
- देवगढ़ में परशुराम का आश्रम माने जाने वाले स्थान पर प्राचीन मंदिर के कुछ अवशेष भी मिले हैं।
- पुरातत्व विभाग के मुताबिक मंदिर का निर्माण 11वीं-12वीं सदी में हुआ होगा।
- वर्तमान में जो मंदिर है उसके गर्भगृह में एकमुखी शिवलिंग स्थित है।
- इसके अलावा नदी देवी, सूर्य, उमा-महेश्वर की मूर्तियां भी वहां मिली हैं।

ऐसे सामने आया इतिहास
-अब से करीब 73 साल पहले देवगढ़ का पौराणिक इतिहास सामने आया।
- कहा जाता है कि 1943 में पास के जमगला के रहने वाले विद्यादास और उनकी उनकी शिष्या ने सपने में कई मूर्तियां गड़ी हुई देखीं।
- यह बात उन्होंने गांव वालों से शेयर की तो जगह की खुदाई की गई। खुदाई में वहां से अर्धनारीश्वर और द्वादश (12) शिवलिंग की मूर्तियां मिलीं।
- उसके बाद वहां लोगों ने एक मंदिर बनवाया। वर्तमान में वहीं मंदिर है।

इस जगह एक प्राचीन सुरंग होने की बात बताई जाती है।

शतमहला में थे 121 तालाब
-परशुराम की माता रेणुका के महल शतमहला के आस-पास कभी 121 तालाब हुआ करते थे।
- यहां सात महल थे जिनके भग्नावशेष अभी देखे जा सकते हैं।
- लगभग 100 तालाब सूख चुके हैं लेकिन 21 तालाब अब भी देखे जा सकते हैं।
- शतमहला में प्रत्येक नवरात्र को महिषासुरमर्दिनी की पूजा की जाती है।


अभी के शिवमंदिर में स्थित शिवलिंग व देवगढ़ के बारे में बताते पुजारी।

तो इसलिए यहां नहीं उगती घास
-इस क्षेत्र में एक अंधला नाम का गांव है जहां एक तालाब का नाम श्रवण तालाब है।
- किवदंती है कि राजा दशरथ ने इसी के किनारे धोखे से श्रवणकुमार को तीर मार दिया था।
- पास में एक ऐसी जगह है जहां घास नहीं उगती। कहते हैं उसी जगह श्रवणकुमार के माता-पिता का अंतिम संस्कार हुआ था।
- अंधला नाम भी श्रवणकुमार के अंधे माता-पिता से जुड़ा हुआ बताया जाता है।


दशकों पुराना बरगद का पेड़
-इसी क्षेत्र में बरगद का एक विशाल पुराना पेड़ है, जिसके आस-पास पुरानी मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं।
- एक नौ कोनों वाली पुरानी बावली भी है। कहा जाता है इसके पानी की इस्तेमाल ऋषि-मुनि करते थे।

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