क्या आपने कभी सुना है कि किसी मंदिर में कुत्ते की पूजा होती है. जी हां! छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में 'कुकुरदेव' नाम का एक प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर में किसी देवी-देवता की नहीं बल्कि कुत्ते की पूजा होती है. कहते हैं कि इस मंदिर में दर्शन करने से कुकुर खांसी नहीं होती और इसके साथ ही कुत्ते के काटने का भय भी नहीं रहता.
बहुत पुराना है मंदिर का इतिहास-
14वीं-15वीं शताब्दी में नागवंशी शासकों ने इसका निर्माण करवाया था. मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा है. उसके बगल में एक शिवलिंग भी है. मंदिर के गेट पर दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा लगाई गई है. यह मंदिर 200 मीटर के दायरे में फैला हुआ है.
लोग यहां शिव के साथ-साथ कुकुरदेव प्रतिमा की पूजा भी करते हैं. मंदिर की चारों दिशाओं में नागों के चित्र बने हुए हैं. मंदिर को चारों चरफ 14वीं-15वीं शताब्दी के शिलालेख भी रखे हैं, जिन पर बंजारों की बस्ती , चांद-सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है. यहां राम, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के अलावा भगवान गणेश की भी एक प्रतिमा स्थापित है.
इस वजह से बना था मंदिर-
कहते हैं, पहले यहां बंजारों की बस्ती थी. उस बस्ती में मालीघोरी नाम का एक बंजारा रहता था और उसके पास एक पालतू कुत्ता था. गांव में अचानक अकाल पड़ने के कारण बंजारे को अपने कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा.
इसी बीच साहूकार के घर चोरी हो गई. कुत्ते ने यह देख लिया था कि चोर वो सामान कहां छुपा रहे हैं. सुबह कुत्ता साहूकार को उस जगह पर ले गया जहां चोरी का सामान था. इससे खुश होकर साहूकार ने इस घटना का उल्लेख एक कागज पर किया और उसे कुत्ते के गले में बांधकर अपने असली मालिक के पास जाने के लिए मुक्त कर दिया.
जब बंजारे ने कुत्ते को वापस आते देखा तो गुस्से में उसे मार डाला. उसके बाद बंजारे ने कुत्ते के गले में बंधे कागज को पढ़ा. उसे पढ़कर बंजारे को अपनी गलती का एहसास हुआ और कुत्ते की याद में उसने मंदिर प्रांगण में कुत्ते की समाधि बनवा दी. उसके बाद उसने कुत्ते की मूर्ति भी वहां स्थापित कर दी. तब से यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है.
यह जानकारी मंदिर में एक बोर्ड पर राज्य के संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की ओर से भी दी गई है.
बहुत पुराना है मंदिर का इतिहास-
14वीं-15वीं शताब्दी में नागवंशी शासकों ने इसका निर्माण करवाया था. मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा है. उसके बगल में एक शिवलिंग भी है. मंदिर के गेट पर दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा लगाई गई है. यह मंदिर 200 मीटर के दायरे में फैला हुआ है.
लोग यहां शिव के साथ-साथ कुकुरदेव प्रतिमा की पूजा भी करते हैं. मंदिर की चारों दिशाओं में नागों के चित्र बने हुए हैं. मंदिर को चारों चरफ 14वीं-15वीं शताब्दी के शिलालेख भी रखे हैं, जिन पर बंजारों की बस्ती , चांद-सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है. यहां राम, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के अलावा भगवान गणेश की भी एक प्रतिमा स्थापित है.
इस वजह से बना था मंदिर-
कहते हैं, पहले यहां बंजारों की बस्ती थी. उस बस्ती में मालीघोरी नाम का एक बंजारा रहता था और उसके पास एक पालतू कुत्ता था. गांव में अचानक अकाल पड़ने के कारण बंजारे को अपने कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा.
इसी बीच साहूकार के घर चोरी हो गई. कुत्ते ने यह देख लिया था कि चोर वो सामान कहां छुपा रहे हैं. सुबह कुत्ता साहूकार को उस जगह पर ले गया जहां चोरी का सामान था. इससे खुश होकर साहूकार ने इस घटना का उल्लेख एक कागज पर किया और उसे कुत्ते के गले में बांधकर अपने असली मालिक के पास जाने के लिए मुक्त कर दिया.
जब बंजारे ने कुत्ते को वापस आते देखा तो गुस्से में उसे मार डाला. उसके बाद बंजारे ने कुत्ते के गले में बंधे कागज को पढ़ा. उसे पढ़कर बंजारे को अपनी गलती का एहसास हुआ और कुत्ते की याद में उसने मंदिर प्रांगण में कुत्ते की समाधि बनवा दी. उसके बाद उसने कुत्ते की मूर्ति भी वहां स्थापित कर दी. तब से यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है.
यह जानकारी मंदिर में एक बोर्ड पर राज्य के संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की ओर से भी दी गई है.
No comments:
Post a Comment