Sunday, February 7, 2016

फ्लावर शो मैत्री बाग 2016 (Flower Show 2016),Maitri Bag,Bhilai

फ्लावर शो मैत्री बाग मे बनाई गयी रंगोली की कुछ झलकियां-

छत्तीसगढ़ में भिलाई मैत्रीबाग पर्यटकों को सहज ही आकर्षित करता है। हर साल भिलाई इस्पात संयंत्र के उद्यानिकी विभाग की ओर से “ फ्लावर शो ” मैत्री बाग का मुख्य आकर्षण है। प्रकृति प्रेमियों को इस शो का बहुत ही बेसब्री से इंतजार रहता है। इस साल रविवार को मैत्री बाग में फ्लावर शो लगा।शो में प्रदर्शन किए गए रखे गए फूलों की वेरायरी लोगों को खूब लूभा रही थी। इस शो के माध्यम से पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने लोगों में जागरुकता लाने के प्रयास की तारीफ की जानी चाहिए।





























Wednesday, February 3, 2016

खैरागढ़ महोत्सव 2016

खैरागढ़ महोत्सव में बतौर दर्शक शामिल होने कला जगत की नामचीन हस्तियां भी संगीत नगरी पहुंची। जो देर रात तक ख्यातिलब्ध कलाकारों की प्रस्तुतियों में रमे रहे। आमंत्रित कलाकारों के अलावा ग्वालियर, जबलपुर, बनारस,कानपुर, मुजफफरनगरसहित रायगढ़, बिलासपुर, भिलाई सहित आसपास के शहरों के की कलाकार व कला से जुड़ी शिक्षण संस्थाओं की छात्र-छात्राएं महोत्सव में पहुंचे। बीते चार सालों से खैरागढ़ महोत्सव में होनी वाली प्रस्तुतियों को करीब से देखने इन हिस्सों से कला प्रेमियों का जत्था विवि पहुंचता रहा है।

दो दिन मशहूर हस्तियों की प्रस्तुति

महोत्सव के दूसरे दिन प्रख्यात तबला वादक शुभंकर बैनर्जी,लोकगायिका मालिनी अवस्थी के अलावा सृजन रंगयात्रा की सिसकियां नाटक व विवि संगीत संकाय द्वारा गायन व वादन की प्रस्तुति दी जाएगी। इसी तरह तीसरे दिन मदन गोपाल सिंह की टीम चार यार द्वारा सूफी संगीत,पं.रतिकांत महापात्र व दल के द्वारा ओडिसी नृत्य,वृंदावन की वन्दना श्री व दल के द्वारा बृज रास लीला,छत्तीसगढ़ी गायिका कविता वासनिक की अनुराग धारा व विवि के कला संकाय की नाटक की प्रस्तुति प्रमुख आकर्षण का केंद्र होगी ।

पर्यटन मंत्री ने किया विधिवत शुरूवात

तीन दिवसीय खैरागढ़ महोत्सव की शुरूवात शाम 7 बजे पर्यटन व संस्कृति मंत्री दयाल दास बघेल ने विधिवत ढंग से दीप प्रज्जवलित कर की। जिनके साथ सांसद अभिषेक सिंह,खैरागढ़ विधायक गिरवर जंघेल,डोंगरगढ़ विधायक सरोजनी बंजारे,नपाअध्यक्ष मीरा चोपड़ा व जनपद अध्यक्ष विक्रांत सिंह,विवि कुलपति प्रो.डॉ.मांडवी सिंह मौजूद थे।विवि प्रशासन ने सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंटकर उनका सम्मान किया।

अब 10 लाख रूपए अतिरिक्त मिलेंगे

महोत्सव को संबोधित करते हुए संस्कृति व पर्यटन मंत्री दयाल दास बघेल ने आने वाले वर्ष से खैरागढ़ महोत्सव की भव्यवता के लिए विवि को 10 लाख रूपए की अतिरिक्त राशि देने की घोषणा की है। अब तक विभाग द्वारा महोत्सव को केवल 10 लाख रूपए ही दिए जा रहे थे,जो आने वाले वर्ष से बढ़कर 20 लाख रूपए हो जाएगी।

श्री बघेल ने विवि के चित्रकला,मूर्तिकला व अन्य संकायों का भी अवलोकन किया। सांसद अभिषेक सिंह ने विवि को अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश की पहचान बनाने वाली संस्था बताते हुए इनके स्थापना के लिए खैरागढ़ राज परिवार के योगदान को अतुलनीय बताया।












देवार घाट (DEWAR GHATA )

जांजगीर आने वाले पर्यटकों के लिए देवार घाट एक अच्छा पिकनिक स्पॉट साबित हो सकता है। यहां पर महानदी, लीलागर और शिवनाथ नदी आपस में मिलती है। इससे इस जगह की खूबसूरती काफी बढ़ जाती है। अगर आप चाहें तो प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने अपने परिवार और दोस्तों के साथ भी आ सकते हैं। विशेषकर फोटोग्राफरों को यह जगह काफी लुभाती है।
यह पामगढ़ तहसील से २२ km दक्षिण पश्चिम की ओर पड़ता है | 

Tuesday, February 2, 2016

राम टेकरी मंदिर (Ram Tekari Temple)

राम टेकरी मंदिर रतनपुर से 3 km की दुरी पर स्थित है| यह अद्भुत स्थापत्य कृति एक पहाड़ी पर है जो चारो ओर से हरियाली से घिरा हुआ है। भगवान विष्णु और काल भैरव के हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को मंदिर में वहाँ मौजूद हैं। रतनपुर में भी मंदिर के आसपास के स्थानों को घुमा जा सकता है। मंदिर की वास्तुकला काफी प्रभावशाली और आकर्षक है।





कैसे पहुंचे :

बिलासपुर से सड़क मार्ग से होते हुए (बिलासपुर अंबिकापुर हाईवे में लगभग 29 Km की दुरी ) 

Monday, February 1, 2016

बिलासपुर (Bilaspur)

बिलासपुर छत्तीसगढ़ का दूसरा सबसे बड़ा और तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला जिला है। यह भारत में विद्युत उत्पादन का केंद्र है। बिलासपुर रेलवे के माध्यम से सबसे अधिक राजस्व उत्पन्न करने वाले स्थानों में से एक है। छत्तीसगढ़ राज्य का उच्च न्यायालय यहीं स्थित है। भिलाई, रायपुर, कोरबा और रायगढ़ के साथ-साथ, बिलासपुर हमारे देश में इस्पात के निर्माण के लिए जाना जाता है।

औद्योगिक क्षेत्र के अलावा, कई अन्य बातें हैं, जो बिलासपुर में हैं, उन्में से कुछ हैं आम, समोसे, कोसा सिल्क साड़ी, खुशबूदार दूबराज चावल। इस क्षेत्र की साड़ियां अच्छी और विविध रंगों की होती हैं। हाथ की बुनी हुई साड़ी बिलासपुर की रंगीन संस्कृति को दर्शाती है। बघेली और भरिआ यहां बोली जाने वाली मुख्य भाषाएं हैं। रावत नाच महोत्सव रावत जनजातियों द्वारा मनाया जाने वाला बिलासपुर का लोक नृत्य उत्सव है।
शहर का नाम बिलासपुर सत्रहवीं सदी में मछली पकड़ने वाली महिला बिलासा से उत्पन्न हुआ है। यह जगह कभी कुछ मछुआरों का अड्डा थी। यहां लातेर मराठा शासन करते थे, उनका शासन ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के साथ खत्‍म हो गया।

बिलासपुर में और आसपास के पर्यटक स्थल

बिलासपुर में विभिन्न पुरातात्विक स्थल और मंदिर दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। अचानकमार वन्यजीव अभयारण्य छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध पारिस्थितिकी पर्यटन स्थलों में से एक है। हसदेव बांगो बांध बिलासपुर से 105 किमी पर है। मल्हार और रतनपुर पुरातत्व के केंद्र रहे हैं। प्राचीन मंदिरों से लेकर किलों के अवशेष यहां पाए जाते हैं।
तालाग्राम "देवरानी -जेठानी" मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। बुलबुला द्वीप और राधिका पानी पार्क वे पार्क हैं, जो स्थानीय लोगों के साथ ही पर्यटकों का भी मन बहलाते हैं। बेलपान में एक विशाल तालाब के साथ ही एक समाधि है। खूटाघाट एक दर्शनीय स्थल है और प्रकृति प्रेमियों का चहेता।
खूटाघाट के आसपास वन, बांध और पहाड़ियां हैं। कबीर चबूतरा बिलासपुर से 41 किमी दूर महात्मा और संतों के लिए एक केंद्र है। बिलासपुर मुख्य नदी अरपा के तट पर स्थित है। लीलागर और मनियारी जिले की अन्य छोटी नदियां हैं। सोनमुडा एक और पर्यटक आकर्षण है, जो घाटियों, पहाड़ों और जंगल का एक मनोरम दृश्य देता है . सोन नदी सोनमुडा से उत्पन्न हुई है।

बिलासपुर का मौसम

बिलासपुर में महाद्वीपीय और मानसून की तरह का मौसम रहता है। वहीं गर्मियां गर्म होती हैं, वहीं सर्दियां हल्की होती हैं। वर्षा सीमित रहती है। इस तरह की जलवायु कृषि के लिए अनुकूल होती है। गेहूं, चावल, गन्ना और कपास उगने वाली कुछ फसलें हैं। औद्योगिक विकास भी ऐसे माहौल में उपयुक्त है।

बिलासपुर कैसे पहुंचें

बिलासपुर रेलवे, रोडवेज और हवाई मार्गों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के प्रमुख स्टेशनों में से एक होने के नाते, बिलासपुर में रेलवे का एक अच्छा नेटवर्क है। स्थानीय स्तर पर ऑटो रिक्शा, रिक्शा, घोड़े वाले तांगे और सिटी बसें उपलब्ध हैं।

District Creation Date   District Govt website 
Bilaspur      1861   http://bilaspur.gov.in/

राजनांदगांव (Rajnandgaon)

राजनांदगांव को 26 जनवरी, 1973 में दुर्ग जिले से अलग किया गया। राजनांदगांव का दूसरा नाम संस्कारधानी है जो इस शहर में बसे विभिन्न धर्म के लोगों के बीच पनपती शांति और सद्भान पर केंद्रित है। इस शहर के चारों ओर कई तालाब और नदियां हैं तथा यह कुछ लघु उद्योगों और व्यवसायों के लिए भी प्रसिद्ध है। क्रमानुसार दुर्ग और बस्तर राजनांदगांव की पूर्वी और दक्षिणी सीमाएं हैं। यह रायपुर से 64 कि.मी दूर है और भविष्य के लिए यहां एक हवाई पट्टी की योजना बनाई जा रही है।

इसका मूल नाम नंदग्राम था, और प्राचीन काल में राजनांदगांव पर कई विभिन्न राजवंशों ने शासन किया। सोमवंशी, कलचुरी और मराठा उनमें से कुछ हैं। इस क्षेत्र में बने महल अपने शासनकाल के शासकों और उनके समाज के बारे में बताते हैं। उस समय की संस्कृति और परंपरा इन महलों के माध्य से प्रतिबिंबित होती है।
ज्यादातर शासक हिंदू थे जैसे कि वैष्णव और गोंड़ राजा। यह ब्रिटिश शासन के दौरान राज नंदगांव राज्य की राजधानी भी बना रहा। रियासत के अंतिम शासक ने अपने महल को कॉलेज के रुप में प्रारंभ करने के लिए दे दिया जिसका नाम इसके नाम पर रखा गया।
इस क्षेत्र के निवासियों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएं हिन्दी और छत्तीसगढ़ी हैं। राजनांदगांव में कई शैक्षिक संस्थाएं हैं। इस शहर के प्रमुख त्योहार दीवाली और गणेश चतुर्थी हैं जो बहुत उत्साह और उमंग के साथ मनाए जाते हैं। इस उत्सव के दौरान मोहारा मेला, बैलों की दौड़ और मीना बा़ज़ार का आयोजन किया जाता है।


राजनांदगांव और उसके आस पास के पर्यटक स्थल

राजनांदगांव के मंदिर देखने योग्य हैं तथा गायत्री मंदिर, सित्ला मंदिर और बर्फानी आश्रम उनमें से कुछ हैं। ड़ोंगरगढ़ पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। ड़ोंगरगढ़ का बमलेश्वरी देवी मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह बड़ी बमलेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। छोटी बमलेश्वरी मंदिर भू-तल पर स्थित है। यहां दशहरा और रामनवमी के त्योहार पर राज्य भर से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मंदिर के परिसर में मेले आयोजित किए जाते हैं। माता शीतला देवी का शक्ति पीठ एक अन्य तीर्थ स्थल है। यह एक प्राचीन मंदिर है जो लगभग 2200 साल पुराना है। यह स्टेशन से 1.5 किमी की दूरी पर स्थित है।


कैसे पहुंचे राजनांदगांव

राजनांदगांव, रेल मार्ग और सड़क मार्ग द्वारा कई शहरों से जुड़ा हुआ है लेकिन यहां हवाई मार्ग की सेवा पूरी तरह उपलब्ध नहीं है। यह एक प्रमुख रेल और सड़क जंक्शन है।

राजनांदगांव की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय

उष्णकटिबंधीय जलवायु का राजा राजनांदगांव, ज्यादातर नम और सूखा रहता है। इस शहर को देखने के लिए यात्री अक्तूबर से लेकर फरवरी के महीनों के बीच जा सकते हैं, तब इस क्षेत्र में सर्दियों का मौसम होता है।

Friday, January 29, 2016

जगदलपुर (Jagdalpur)

जगदलपुर छत्तीसगढ़ राज्य में बस्तर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। जगदलपुर अपने हरे भरे पहाड़ों, गहरी घाटियों, घने जंगलों, नदियों, झरनों, गुफाओं, प्राकृतिक पार्क, शानदार स्मारकों, समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों, विपुल उत्सव और आनंदमय एकांत से भर अपनी हरियाली के लिए जाना जाता है।

जगदलपुर में और आसपास के पर्यटक स्थल

अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य और जंगली जानवरों के लिये एक विशाल संरक्षित वन से समृद्ध, जगदलपुर अपनी पारंपरिक लोक संस्‍कृति के लिये जाना जाता है जो इस क्षेत्र को विशिष्टता प्रदान करता है। धमतरी में कई पर्यटक आकर्षण हैं। उनमें से कुछ कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान, इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान, चित्रकोट वॉटरफॉल, चित्राधरा झरने और दलपत सागर झील हैं, जहां एक म्‍यूजिकल फाउंटेन भी है, जो इस द्वीप को सुंदरता प्रदान करता है।
जगदलपुर - कला और हस्तशिल्प

कला और शिल्प समय, समाज और संस्कृति का एक लिखित प्रमाण है। आदिवासी और लोक कलाकार और शिल्पकार अपने कार्यों में अपनी विचारधारा, विचारों और कल्पना की ठोस अभिव्यक्ति करते हैं। वस्तुओं और दैनिक उपयोग की कलाकृतियों को बनाने हुए भी उनकी कलात्मक कल्पना और सौंदर्य की भावना काम करती रहती है। अपने देवी-देवताओं को शांत करने के लिये कर्मकांडों में कलात्मक प्रसाद की उनकी परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो कला को जीवित और जीवंत रखे हुए है। कला, वास्तव में, अपने अस्तित्व का हिस्सा है।
जगदलपुर के आदिवासी और लोक कला और शिल्प की दुनिया में एक झलक भी लोगों को आकर्षषित कर लेती है। आदिवासी कलाकारों और शिल्पकारों को अपने अतीत और समृद्ध परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। देखा जाये तो जिस तरह से वे मिट्टी, लकड़ी, पत्‍थर, धातु, आदि को विलक्षण आकार, रूप और आकर्षक डिजाइनों में ढालते हैं, वह बेहद आकर्षक होता है और मन को छूने वाला होता है।
जगदलपुर में लौह शिल्प की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, और अपने कौशल और रचनात्मकता में बेजोड़ खड़ी हुई है। क्षेत्र के धातु शिल्प एक अद्वितीय देहाती आकर्षण हैं। लोहे की मूर्तियों में उत्‍कृष्‍टता के साथ क्षेत्र के शिल्‍पकार प्रत्‍येक पारंपरिक या काल्‍पनिक विषय पर प्रयोग करते हैं। उनके विषयों में स्थानीय देवता, सशस्त्र आदिवासी सैनिक, घोड़े, सूअर, और विभिन्न पक्षी शामिल होते हैं। उत्पाद मुख्य रूप से सजाने के लिये, पूजा करने के लिेये और रोजमर्रा में इस्‍तेमाल होने वाले हाते हैं।
जगदलपुर - लोग और संस्कृति

जगदलपुर के लोग अलग अलग कबीलों में बंटे हुए हैं। यहां कुछ जनजातियां पायी जाती हैं, जिनमें गोंड, मुरिया, हल्‍बा और अभुजमरिया हैं। गोंड न केवल भारत में सबसे बड़ा आदिवासी समूह हैं, बल्कि जगदलपुर की आदिवासी आबादी में सबसे ज्‍यादा यही हैं। वे मुख्य रूप से एक खानाबदोश जनजाति है और उन्‍हें कोयटोरिया भी बुलाया जाता है। मुरिया गोंड जनजाति में एक उप समूह है।
मुरिया, आम तौर पर खानाबदोश गोंड के विपरीत, स्थायी गांवों में रहते हैं। वे मुख्य रूप से खेती, शिकार पर और जंगल के फल खाकर जीवित रहते हैं। मुरिया आम तौर पर बहुत गरीब होते हैं और बांस, मिट्टी और फूस की छत के घरों में रहते हैं। हल्‍बा विकसित और समृद्ध जनजातीय समूहों में से एक है और उनमें से कई जमीनों के मालिक हैं।
राज्‍य के आदिवासियों के बीच हल्‍बा अपनी वेशभूषा, भाषा और सामाजिक गतिविधियों के कारण उच्‍च 'स्थानीय स्थिति' के लिये गौरवान्वित महसूस करते हैं। अभुजमारिया वो आदिवासी हैं, जो जगदलपुर के भौगोलिक रूप से दुर्गम क्षेत्र अभुजमार पहाड़ों और कुटरूमार पहाड़ियों पर पाये जाते हैं।

जगदलपुर तक कैसे पहुंचे

जगदलपुर में अच्छी तरह से रेल और सड़क मार्ग से राज्य के प्रमुख शहरों से जुड़ा है। शहर अच्छी तरह से रेल और सड़क सेवाओं के माध्यम से जुड़ा हुआ है।

महासमुंद (Mahasamund)

कभी सोमावंसिया सम्राटों के शासन में रहा, महासमुंद पारंपरिक कला और संस्कृति का एक केंद्र है। महासमुंद छत्तीसगढ़ के मध्य पूर्वी हिस्सा में है। सिरपुर, इस क्षेत्र का सांस्कृतिक केंद्र है, जिसकी वजह से काफी बड़ी संख्या में पर्यटक साल भर यहाँ आते है। यह महानदी नदी से किनारों पे बसा हुआ है। यह क्षेत्र चूना पत्थर और ग्रेनाइट चट्टानों से भरा पड़ा है।

महासमुंद की संस्कृति

कई जनजातियां जैसे बहलिया, हल्बा, मुंडा , सोनार , संवारा , पारधी, आदि इस क्षेत्र में रहते हैं। जनजातीय संस्कृति, आदिवासी मेलों और त्योहार यहाँ से रोज़मर्रा के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यहाँ के लोगों का पहनावा एकदम पारंपरिक है, पुरुष धोती , कुर्ता , पगड़ी और चमड़े का जूता अतः भंदायी पहनते है और महिलाएं साड़ी पहेनती हैं। अत्करिया पारंपरिक जूते है। बिछिया , करधन या कमर बंद , पर्पत्ति या कोण बैंड , फूली या चांदी की बालियों जैसे गहने यहाँ की महिलाएं पहनती हैं। त्योहारों को धूम धाम से मनाना उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

महासमुंद में और आसपास के पर्यटक स्थल

महासमुंद में और आसपास पर्यटकों के आकर्षण में, लक्ष्मण मंदिर, आनंद प्रभु कुडी विहार , भाम्हिनी की स्वेत गंगा, खाल्लारिमाथा मंदिर , घुधरा ( दलदली ) , चंडी मंदिर ( बिरकोनी ) , चंडी मंदिर ( गुछापाली) , स्वास्तिक विहार , गंधेस्वर मंदिर , खल्लारी माता मंदिर आदि है।

महासमुंद तक कैसे पहुंचे

सड़क मार्ग, रेल और हवाई यात्रा कर बड़ी ही आसानी से महासमुंद तक  जाया जा सकता है। 

जशपुर (Jashpur)

जशपुर, पहाड़ी इलाकों और हरी - भरी हरियाली से घिरा स्‍थान है जो छत्‍तीसगढ़ के उत्‍तर - पूर्वी हिस्‍से में स्थित है। पहाड़ी इलाके को ऊपरी घाट के नाम से और समतल क्षेत्रों को कुछ पहाड़ों के साथ नीचे घाट के नाम से जाना जाता है। ऊपरी घाट, एक पठार का हिस्‍सा है जिसे पैट के नाम से जाना जाता है। यहां दो मुख्‍य घाट है जिनके नाम है : झंडा घाट और भेलाघाट।  जशपुर नगर एक शहर है जो छोटानागपुर पठार क्षेत्र में स्थित है। कुनकुरी यहां का सबसे गर्म क्षेत्र है और पंड्रापत यहां का सबसे ठंडा क्षेत्र है जो रेड कॉरीडोर के तहत आता है।

जशपुर और उसके आसपास स्थित पर्यटन स्‍थल

इस क्षेत्र में कई सुंदर झरने और प्रकृति का आनंदमय सुख देने वाले अन्‍य सुंदर स्‍थल है। राजपुरी झरना, कैलाश गुफा, दानपुरी झरना, रानी दाह झरना, भेरिंगराज झरना, कैथेड्रल कुनकुरी, धामेरा झरना, कुडियारानी की गुफा, सांप का पार्क, सोगृह अघोर आश्रम, बादलखोल अभयारण्‍य, गुल्‍लु झरना, चौरी झरना, रानी झूला, बाने झरना, हारा दीपा, लोरो घाटी, बेल महादेव, आदि इस क्षेत्र के प्रमुख आकर्षणों में से है।

जशपुर का मौसम

जशपुर एक ऊंचे पठार पर स्थित है जहां जलवायु साल भर सुखद रहती है।

जशपुर तक कैसे पहुंचे

जशपुर तक हवाई, ट्रेन और सड़क यात्रा के द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।


राजधानी रायपुर (Raipur : Capital of Chhattisgarh)

छत्तीसगढ़ की राजधानी, रायपुर छत्तीसगढ़ में तेज़ी से बढ़ते हुए शहरों में से एक है और एक पर्यटन केंद्र भी है। अकसर ’भारत का धान का कटोरा’ कहा जाने वाला रायपुर अपने औद्योगिक विकास और पर्यटन के मामले में एक उभरता हुआ शहर है।

रायपुर में और इसके आसपास के पर्यटन स्थान
रायपुर इस इलाके के उन स्थानों में से एक है जहाँ आप छुट्टियों का मज़ा ले सकते हैं। हालांकि, पहले पर्यटक इस शहर में होने वाली पर्यटन गतिविधियों से अनभिज्ञ थे, लेकिन अब विदेशियों और अन्य पर्यटकों के बीच रायपुर लोकप्रियता हासिल कर रहा है। रायपुर में अनेक प्रकार के पर्यटन आकर्षण हैं। उनमें से कुछ हैं- दूधधारी मठ, महंत घासीदास संग्रहालय, विवेकानंद सरोवर, विवेकानंद आश्रम, शादानी दरबार और फिंगेश्वर। यह शहर वास्तु स्मारकों और पुरानी इमारतों के खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है जो दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
नगर घड़ी शहर के बीचोंबीच स्थित एक गाने वाली घड़ी है जो हर घंटे पर बजने से पहले छत्तीसगढ़ का स्थानीय लोकसंगीत बजाती है। राजीव गांधी वैन और उर्जा भवन एक अन्य दिलचस्प जगह है जहाँ सभी उपकरण सौर उर्जा से चलते हैं।
पालारी, शहीद स्मारक भवन, महावीर पार्क, पुखौती मुक्तांगन संग्रहालय, महाकौशल कला परिषद, चंद्रखुरी औरा गिरोधपुरी अन्य आकर्षण स्थान हैं।
रायपुर के इतिहास की एक झलक

पहले समय में रायपुर मध्य प्रदेश का एक हिस्सा था और उस समय यह शहर इंदौर के बाद राज्य का प्रमुख व्यावसायिक केंद्र था। इस जगह की आय का प्रमुख स्रोत कृषि प्रसंस्करण, इस्पात, सीमेंट, मिश्रधातु, पोहा और चावल थे। अब यह शहर कोयला, बिजली, प्लाईवुड, स्टील और एल्यूमीनियम के अपने समृद्ध उद्योगों के कारण छत्तीसगढ़ के औद्योगिक स्थल के रूप में उभरा है।
रायपुर के लोग और संस्कृति

देश के उत्तरपूर्वी भाग की एक छोटी सी आबादी के साथ उत्तर भारतीय ओर दक्षिण भारतीय, पारंपरिक छत्तीसगढ़ी लोग रायपुर के मूल निवासी हैं। ओडिशा(उड़ीसा) के पास होने के कारण इस क्षेत्र में उडि़या भाषा बोली जाती है। स्थानीय त्योहार जैसे हरेली, पोला ओर तीज रायपुर में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहार हैं।
रायपुर की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय

रायपुर की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय सर्दियों के दौरान होता है जो अक्टूबर से मार्च तक होती हैं।